नई दिल्ली, जागरण संवाददाता : निजी स्कूलों की बेहिसाब कमाई और
हेराफेरी का खुलासा न हो जाए, इसलिए स्कूल प्रशासन गरीबी कोटे के तहत 25
फीसदी सीटों पर दाखिले का विरोध कर रहे हैं। सरकार आर्थिक रूप से कमजोर
बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूलों को आर्थिक सहायता देगी तो उनके बही-खातों
को ऑडिट भी करेगी। ऐसे में उनकी कमाई व हेराफेरी का खुलासा हो जाएगा, जो
उनके लिए परेशानी का सबब बन सकता है।
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर आर्थिक
रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को दाखिला देना अनिवार्य कर दिया गया है।
सरकार इन बच्चों के दाखिले पर स्कूलों को आर्थिक सहायता भी मुहैया करा रही
है। फिर भी स्कूल कोटे के तहत दाखिले को तैयार नहीं हैं। इसका कारण स्कूलों
की बेहिसाब कमाई है। निजी स्कूलों द्वारा शिक्षकों को कम वेतन देने व
विभिन्न मदों में अभिभावकों से पैसे लेने के मामले भी कई बार सामने आ चुके
हैं।
शिक्षा मंत्री अरविंदर सिंह लवली ने भी बृहस्पतिवार को मीडिया के सामने
सवाल किया आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को दाखिला देने से इनकार
करने वाले स्कूलों की मासिक फीस तीन सौ से एक हजार रुपये के बीच है। सरकारी
योजना के तहत उन्हें सहायता राशि दी जाएगी। वर्दी, किताब और जूते-मोजे भी
गरीब बच्चों को सरकार की ओर से वितरित किए जाएंगे। ऐसे में निजी स्कूलों की
आपत्ति क्या है?
सूत्रों का कहना है कि स्कूल चाहते हैं कि सरकार स्कूलों को दी जाने
वाली सहायता राशि सीधे गरीब बच्चों को दे। लेकिन सरकार को डर है कि गरीब
बच्चे को एक हजार से 13 सौ रुपये प्रतिमाह दिया गया तो यह रकम स्कूल फीस
में जमा न होकर गरीब परिवार के घर खर्च में चले जाएंगे। इसके बाद स्कूल
निशुल्क कोटे पर दाखिला लेने वाले छात्रों को परेशान करेंगे। स्कूल को
आर्थिक सहायता मिलने पर गरीब परिवार का बच्चा रुपयों के लेन-देन से दूर
होकर पढ़ाई पर ध्यान दे सकेगा।