भोपाल.
प्रदेश में देशी-विदेशी पक्षियों और अन्य जलचरों के रहवास (प्राकृतिक
जलाशय) कम हो रहे हैं। पिछले एक दशक में इन जलाशयों की संख्या 1883 से घटकर
1256 रह गई है। देवास, धार और झाबुआ जिलों में स्थिति सबसे खराब है। घटते
जलाशयों की वजह से प्रवासी पक्षियों ने भी प्रदेश की ओर रुख करना छोड़ दिया
है।
कोयंबटूर स्थित ‘सालिम अली सेंटर फॉर ऑरनिथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री’
(सेकान) द्वारा जारी किए गए शोध दस्तावेज ‘इनलैंड वैटलैंड्स ऑफ इंडिया :
कनजरवेशन प्रायोरटीज’ के अनुसार सन 2001 में प्रदेश में 1883 जलाशय थे।
इनमें से 56 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र वाले करीब 407 और 56 हेक्टेयर से कम
वाले 1476 जलाशय थे। अब इनमें से एक तिहाई यानी 627 जलाशय कम हो गए हैं।
भिंड का 55 हेक्टेयर क्षेत्रफल का गोहद तालाब और इतना ही बड़ा करैरा
(शिवपुरी) का दिहाला तालाब पूरी तरह से सूख गए हैं। यही हाल इंदौर के
लिंबोदी और मुंडी तालाब सहित अन्य तालाबों का है। जिन जिलों में जलाशय
बेहतर स्थिति में हैं उनमें जबलपुर, मंदसौर और मुरैना-श्योपुर शामिल हैं।
सोसायटी के अनुसार 10 से 15 फीसदी जलाशय अभी संकट में हैं, क्योंकि इनके संरक्षण के लिए कोई उपाय नहीं किए जा रहे हैं।
यह सही है कि प्रदेश में एक तिहाई जलाशय घट गए हैं। इसके पीछे प्राकृतिक
कारणों को तो हम खत्म नहीं कर सकते लेकिन मानव निर्मित कारणों पर नियंत्रण
पाया जा सकता है। तालाबों और कुओं को पुनर्जीवित करना होगा ताकि लोगों की
निर्भरता प्राकृतिक जलाशयों पर कम हो और वे विकसित हो सकें।
प्रो. आरजेराव, समन्यवक (मप्र-छग), सेकान रिसर्च टीम
यहां हैं सबसे कम जलाशय
देवास : जिले के 7000 वर्ग किमी क्षेत्र में से मात्र 232 हेक्टेयर क्षेत्र पर जलाशय।
धार : जिले के 10000 वर्ग किमी क्षेत्र में से 583 हेक्टेयर क्षेत्र पर जलाशय शेष।
झाबुआ : 6700 वर्ग किमी क्षेत्र में से 567 हेक्टेयर क्षेत्र पर जलाशय बचे।
सबसे अधिक यहां
जबलपुर : 10000 वर्ग किमी क्षेत्र में से 45000 हेक्टेयर पर जलाशय
मंदसौर : 9790 वर्ग किमी क्षेत्र में से 31000 हेक्टेयर पर जलाशय
मुरैना-श्योपुर : 11500 वर्ग किमी क्षेत्र में से 30000 हेक्टेयर पर जलाशय
क्या हैं कारण
प्राकृतिक : बारिश में लगातार कमी होना।
/>
ग्लोबल वार्मिग के चलते उच्च तापमान में बढ़ोतरी।
मानव निर्मित : खेती के लिए हो रहा जलाशयों का उपयोग, पीने के लिए बेतरतीब तरीके से निकाला जा रहा है पानी।
प्रदेश में देशी-विदेशी पक्षियों और अन्य जलचरों के रहवास (प्राकृतिक
जलाशय) कम हो रहे हैं। पिछले एक दशक में इन जलाशयों की संख्या 1883 से घटकर
1256 रह गई है। देवास, धार और झाबुआ जिलों में स्थिति सबसे खराब है। घटते
जलाशयों की वजह से प्रवासी पक्षियों ने भी प्रदेश की ओर रुख करना छोड़ दिया
है।
कोयंबटूर स्थित ‘सालिम अली सेंटर फॉर ऑरनिथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री’
(सेकान) द्वारा जारी किए गए शोध दस्तावेज ‘इनलैंड वैटलैंड्स ऑफ इंडिया :
कनजरवेशन प्रायोरटीज’ के अनुसार सन 2001 में प्रदेश में 1883 जलाशय थे।
इनमें से 56 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र वाले करीब 407 और 56 हेक्टेयर से कम
वाले 1476 जलाशय थे। अब इनमें से एक तिहाई यानी 627 जलाशय कम हो गए हैं।
भिंड का 55 हेक्टेयर क्षेत्रफल का गोहद तालाब और इतना ही बड़ा करैरा
(शिवपुरी) का दिहाला तालाब पूरी तरह से सूख गए हैं। यही हाल इंदौर के
लिंबोदी और मुंडी तालाब सहित अन्य तालाबों का है। जिन जिलों में जलाशय
बेहतर स्थिति में हैं उनमें जबलपुर, मंदसौर और मुरैना-श्योपुर शामिल हैं।
सोसायटी के अनुसार 10 से 15 फीसदी जलाशय अभी संकट में हैं, क्योंकि इनके संरक्षण के लिए कोई उपाय नहीं किए जा रहे हैं।
यह सही है कि प्रदेश में एक तिहाई जलाशय घट गए हैं। इसके पीछे प्राकृतिक
कारणों को तो हम खत्म नहीं कर सकते लेकिन मानव निर्मित कारणों पर नियंत्रण
पाया जा सकता है। तालाबों और कुओं को पुनर्जीवित करना होगा ताकि लोगों की
निर्भरता प्राकृतिक जलाशयों पर कम हो और वे विकसित हो सकें।
प्रो. आरजेराव, समन्यवक (मप्र-छग), सेकान रिसर्च टीम
यहां हैं सबसे कम जलाशय
देवास : जिले के 7000 वर्ग किमी क्षेत्र में से मात्र 232 हेक्टेयर क्षेत्र पर जलाशय।
धार : जिले के 10000 वर्ग किमी क्षेत्र में से 583 हेक्टेयर क्षेत्र पर जलाशय शेष।
झाबुआ : 6700 वर्ग किमी क्षेत्र में से 567 हेक्टेयर क्षेत्र पर जलाशय बचे।
सबसे अधिक यहां
जबलपुर : 10000 वर्ग किमी क्षेत्र में से 45000 हेक्टेयर पर जलाशय
मंदसौर : 9790 वर्ग किमी क्षेत्र में से 31000 हेक्टेयर पर जलाशय
मुरैना-श्योपुर : 11500 वर्ग किमी क्षेत्र में से 30000 हेक्टेयर पर जलाशय
क्या हैं कारण
प्राकृतिक : बारिश में लगातार कमी होना।
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ग्लोबल वार्मिग के चलते उच्च तापमान में बढ़ोतरी।
मानव निर्मित : खेती के लिए हो रहा जलाशयों का उपयोग, पीने के लिए बेतरतीब तरीके से निकाला जा रहा है पानी।