सीकर. फसल को दीमक से बचाने की हमारी तकनीक अफ्रीकी देश अपनाएंगे।
यह खास इसलिए भी है कि यह तकनीक दांता गांव की महिला कृषक ने इजाद की है।
जिस पर भारत में सर्वे होने के साथ ही अफ्रीका, फ्रेंच व अंग्रेजी में
पुस्तक प्रकाशित कर अपने किसानों को इस तकनीक से वाकिफ करवा रहा है। करीब
पांच साल पहले दांता कस्बे की महिला किसान भगवतीदेवी ने अपने खेत पर दीमक
नियंत्रण के लिए अनोखा तरीका अपनाया।
इसमें किसी कीटनाशक का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है। बल्कि सफेदे की लकड़ी
के सहारे फसल को दीमक से बचाने में कामयाबी हासिल की है। इस तकनीक की
प्रमाणिकता जांचने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र फतेहपुर के वैज्ञानिकों ने
इस पर तीन साल तक फील्ड में पर्यवेक्षण किया। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में
इस विधि को दीमक नियंत्रण में काफी हद तक कारगर बताया गया है।
यह है तकनीक: इस तकनीक में 10-10 वर्ग मीटर में 2 से 3 फीट लंबे व
डेढ़ इंच मोटी सफेदे की लकड़ी के टुकड़े भूमि पर लंबाई में इस प्रकार रखे
जाते हैं कि उनका आधा हिस्सा मिट्टी में हो दबा हो। फसल बुआई के बाद
जैसे-जैसे दीमक बढ़ती है तो वह फसल को चट करने की बजाय इस लकड़ी को खाने
लगती है। दीमक लगने के बाद इस लकड़ी को वहां से हटाकर दीमक को नष्ट कर दिया
जाता है। इस विधि में प्रति एकड़ करीब सवा तीन सौ रुपए का खर्चा आता है।
खास तो यह है कि दीमक नियंत्रण के लिए इन लकड़ियों का उपयोग तीन फसलों तक
लिया जा सकता है।
विदेश तक यूं पहुंची देसी विधि: दांता कस्बे की भगवती देवी की ओर से
दीमक नियंत्रण के लिए इजाद की गई इस विधि को सैंट्रल फॉर इंटरनेशनल ट्रेड
इन एग्रीकल्चर एंड एग्रो बेस इंडस्ट्रीज (सीटा) में प्रकाशित होने के बाद
कृषि अनुसंधान और कृषि विभाग ने भी इसे गंभीरता से लिया और इस पर
पर्यवेक्षण किया गया।
इधर, संयुक्त राष्ट्रसंघ की अंक्टाड नामक संस्था के वरिष्ठ अधिकारी बोनापास
ऑनगुग्लो के मार्गदर्शन से सिटा ने प्रोडयूर्सिग मोअर विथ लेस
रिसोर्सेस-सक्सेस स्टोरीज ऑफ इंडीयन ड्रायलेंड फार्मर्स नामक किताब में भी
इसे प्रकाशित किया। हाल ही में झांबिया की राजधानी लुसाका में झांबिया व
भारत सरकार की संयुक्त बैठक में अफ्रीका ने इस विधि की सराहना करते हुए
फ्रेंच व अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कर अफ्रीकी किसानों तक पहुंचाने का
निर्णय लिया।
नवाचारों की राह पर मिली कामयाबी: भगवती देवी का कहना है कि, उनके
पति प्रगतिशील किसान सुंडाराम द्वारा खेती में किए जा रहे नवाचारों से
उन्हें भी कुछ नया करने की प्ररेणा मिली। इसी बलबूते हर फसल को नुकसान
पहुंचाने वाली दीमक के नियंत्रण का देसी तरीका इजाद करने की सूझी। इस पर
/> काम करते हुए एक ऐसा तरीका निकल गया जो फसल को दीमक से बचाने में कारगर है।
खुशी है कि यह तकनीक अपने किसानों के साथ अफ्रीकी देश भी अपना रहे हैं।
दीमक नियंत्रण की इस तकनीक का फील्ड में पर्यवेक्षण किया गया है। इसके
सकारात्मक परिणाम मिले हैं। किसानों को इससे जागरूक करने के लिए कृषि विभाग
को इसकी रिपोर्ट दी गई है। – डा. जुनैद अख्तर, प्रभारी कृषि विज्ञान
केंद्र फतेहपुर
दीमक नियंत्रण की यह जैविक विधि है। इसमें किसी तरह के कीटनाशक का उपयोग
नहीं किया जाता है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में किसानों को इसकी जानकारी दी
जा रही है। – केसी मीणा, संयुक्त निदेशक कृषि विभाग सीकर
यह खास इसलिए भी है कि यह तकनीक दांता गांव की महिला कृषक ने इजाद की है।
जिस पर भारत में सर्वे होने के साथ ही अफ्रीका, फ्रेंच व अंग्रेजी में
पुस्तक प्रकाशित कर अपने किसानों को इस तकनीक से वाकिफ करवा रहा है। करीब
पांच साल पहले दांता कस्बे की महिला किसान भगवतीदेवी ने अपने खेत पर दीमक
नियंत्रण के लिए अनोखा तरीका अपनाया।
इसमें किसी कीटनाशक का इस्तेमाल भी नहीं किया गया है। बल्कि सफेदे की लकड़ी
के सहारे फसल को दीमक से बचाने में कामयाबी हासिल की है। इस तकनीक की
प्रमाणिकता जांचने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र फतेहपुर के वैज्ञानिकों ने
इस पर तीन साल तक फील्ड में पर्यवेक्षण किया। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट में
इस विधि को दीमक नियंत्रण में काफी हद तक कारगर बताया गया है।
यह है तकनीक: इस तकनीक में 10-10 वर्ग मीटर में 2 से 3 फीट लंबे व
डेढ़ इंच मोटी सफेदे की लकड़ी के टुकड़े भूमि पर लंबाई में इस प्रकार रखे
जाते हैं कि उनका आधा हिस्सा मिट्टी में हो दबा हो। फसल बुआई के बाद
जैसे-जैसे दीमक बढ़ती है तो वह फसल को चट करने की बजाय इस लकड़ी को खाने
लगती है। दीमक लगने के बाद इस लकड़ी को वहां से हटाकर दीमक को नष्ट कर दिया
जाता है। इस विधि में प्रति एकड़ करीब सवा तीन सौ रुपए का खर्चा आता है।
खास तो यह है कि दीमक नियंत्रण के लिए इन लकड़ियों का उपयोग तीन फसलों तक
लिया जा सकता है।
विदेश तक यूं पहुंची देसी विधि: दांता कस्बे की भगवती देवी की ओर से
दीमक नियंत्रण के लिए इजाद की गई इस विधि को सैंट्रल फॉर इंटरनेशनल ट्रेड
इन एग्रीकल्चर एंड एग्रो बेस इंडस्ट्रीज (सीटा) में प्रकाशित होने के बाद
कृषि अनुसंधान और कृषि विभाग ने भी इसे गंभीरता से लिया और इस पर
पर्यवेक्षण किया गया।
इधर, संयुक्त राष्ट्रसंघ की अंक्टाड नामक संस्था के वरिष्ठ अधिकारी बोनापास
ऑनगुग्लो के मार्गदर्शन से सिटा ने प्रोडयूर्सिग मोअर विथ लेस
रिसोर्सेस-सक्सेस स्टोरीज ऑफ इंडीयन ड्रायलेंड फार्मर्स नामक किताब में भी
इसे प्रकाशित किया। हाल ही में झांबिया की राजधानी लुसाका में झांबिया व
भारत सरकार की संयुक्त बैठक में अफ्रीका ने इस विधि की सराहना करते हुए
फ्रेंच व अंग्रेजी भाषा में अनुवाद कर अफ्रीकी किसानों तक पहुंचाने का
निर्णय लिया।
नवाचारों की राह पर मिली कामयाबी: भगवती देवी का कहना है कि, उनके
पति प्रगतिशील किसान सुंडाराम द्वारा खेती में किए जा रहे नवाचारों से
उन्हें भी कुछ नया करने की प्ररेणा मिली। इसी बलबूते हर फसल को नुकसान
पहुंचाने वाली दीमक के नियंत्रण का देसी तरीका इजाद करने की सूझी। इस पर
/> काम करते हुए एक ऐसा तरीका निकल गया जो फसल को दीमक से बचाने में कारगर है।
खुशी है कि यह तकनीक अपने किसानों के साथ अफ्रीकी देश भी अपना रहे हैं।
दीमक नियंत्रण की इस तकनीक का फील्ड में पर्यवेक्षण किया गया है। इसके
सकारात्मक परिणाम मिले हैं। किसानों को इससे जागरूक करने के लिए कृषि विभाग
को इसकी रिपोर्ट दी गई है। – डा. जुनैद अख्तर, प्रभारी कृषि विज्ञान
केंद्र फतेहपुर
दीमक नियंत्रण की यह जैविक विधि है। इसमें किसी तरह के कीटनाशक का उपयोग
नहीं किया जाता है। प्रशिक्षण कार्यक्रमों में किसानों को इसकी जानकारी दी
जा रही है। – केसी मीणा, संयुक्त निदेशक कृषि विभाग सीकर