आंगनबाड़ी केंद्रों में गड़बड़झाला है। पहले जनता कहती थी, अब मंत्री भी
मान रही हैं। समाज कल्याण मंत्री विमला प्रधान को सूचना मिली है कि
आंगनबाड़ी केंद्रों के वास्तविक लाभार्थियों की संख्या सरकारी रिपोर्ट में
बढ़ा-चढ़ाकर बताई जा रही है। इस मद में वास्तविक व्यय और जो खर्च कागज पर
दिखाया जाता है, दोनों में जमीन-आसामान का अंतर होता है। कई केंद्र महीने
में कई दिनों तक नहीं खुल रहे हैं। मतलब, बच्चों को हर दिन पोषाहार नहीं
मिल रहा, फिर भी पूरी राशि खर्च हो जा रही है।
केंद्र सरकार की इस योजना का सूबे में यह हाल देखकर मंत्री ने विभागीय
सचिव व उपायुक्तों को कई निर्देश दिए हैं। राज्य में इस योजना को सशक्त
करने की बाबत जहां गांव की सरकार की सीधी सहभागिता सुनिश्चित करने का खाका
तैयार हो चुका है, वहीं केंद्र के मानक के अनुरूप आंगनबाड़ी केंद्रों के
नियमित निरीक्षण का आदेश भी निर्गत हो चुका है।
मंत्री का आदेश
– सीडीपीओ के प्रतिवेदन पर जिला कल्याण पदाधिकारी प्रत्येक महीने की 15
तारीख तक आंगनबाड़ी केंद्रों के पोषाहार खाते में भेजेंगे राशि।
– मानदेय की राशि की निकासी जहां सेविकाओं और सहायिकाओं के संयुक्त
हस्ताक्षर से होगी, वहीं आंगनबाड़ी खाता के संचालन में माता समितियां भी
करेंगी शिरकत।
– उपायुक्त न सिर्फ आंगनबाड़ी केंद्रों का पर्यवेक्षण सुनिश्चित कराएंगे,
बल्कि इसकी जमीनी सच्चाई जानने को हर महीने समीक्षा भी करेंगे।
– नियमित रूप से काम नहीं करने वाली आंगनबाड़ी सेविकाओं/सहायिकाओं को हटाने का प्रस्ताव पारित कर सकती है ग्रामसभा।
– वार्ड सदस्य करेंगे पोषाहार क्रय एवं स्टॉक रजिस्टर का सत्यापन। वे
पोषाहार वितरण का निरीक्षण तो करेंगे ही, रोकड़ बही संधारण की स्थिति पर भी
रखेंगे नजर।