जयपुर.
मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन को उम्रकैद की सजा का फैसला ऐसा फैसला
है जिसने लोकतंत्र में आम आदमी के बोलने और अपने हक की आवाज उठाने पर ही
सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह बात रविवार को यहां बिनायक की पत्नी इलिना सेन ने कही, जो महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में प्रोफेसर हैं। बिनायक सेन की
सजा के विरोध में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विनोबा ज्ञान मंदिर में खुली
चर्चा रखी। कार्यक्रम में मैग्सैसे अवार्ड विजेता अरुणा राय, सामाजिक
कार्यकर्ता निखिल डे, इलिना सेन और उनकी दोनों बेटियां भी मौजूद थीं।
इलिना ने बताया कि बिनायक पर जो आरोप लगाए गए हैं उनके पक्ष में पुलिस ने
कोर्ट में सबूत ही नहीं रखे और बचाव पक्ष के गवाहों को नजरअंदाज करके
एकतरफा फैसला दिया गया। बिनायक 30 साल से छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे हैं। रायपुर जेल में बंद माओवादी नेता
नारायण सान्याल से बिनायक 33 बार मिले थे, लेकिन वे सारी मुलाकातें जेल
अधिकारियों की मौजूदगी में हुईं थीं।
सान्याल की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफों को लेकर ही ये मुलाकातें हुई थीं और
जेल अधिकारियों के सामने दोनों हिंदी में बात करते थे, इस बात को जेलरों ने
गवाही में भी माना है। बिनायक के पास सान्याल के जो तीन पत्र मिले हैं वे
भी सान्याल की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफों के बारे में ही हैं। बिनायक को आम
आदिवासी के साथ सलवा जुड़ूम में किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने
की सजा मिली है। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन डीजीपी ने 2006 में खुलेआम कहा था
कि सरकार का विरोध करने वाले कुछ लोगों को सबक सिखाया जाएगा।
मानवाधिकार कार्यकर्ता बिनायक सेन को उम्रकैद की सजा का फैसला ऐसा फैसला
है जिसने लोकतंत्र में आम आदमी के बोलने और अपने हक की आवाज उठाने पर ही
सवाल खड़े कर दिए हैं।
यह बात रविवार को यहां बिनायक की पत्नी इलिना सेन ने कही, जो महात्मा गांधी
अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा में प्रोफेसर हैं। बिनायक सेन की
सजा के विरोध में कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने विनोबा ज्ञान मंदिर में खुली
चर्चा रखी। कार्यक्रम में मैग्सैसे अवार्ड विजेता अरुणा राय, सामाजिक
कार्यकर्ता निखिल डे, इलिना सेन और उनकी दोनों बेटियां भी मौजूद थीं।
इलिना ने बताया कि बिनायक पर जो आरोप लगाए गए हैं उनके पक्ष में पुलिस ने
कोर्ट में सबूत ही नहीं रखे और बचाव पक्ष के गवाहों को नजरअंदाज करके
एकतरफा फैसला दिया गया। बिनायक 30 साल से छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाकों में
स्वास्थ्य क्षेत्र में काम कर रहे हैं। रायपुर जेल में बंद माओवादी नेता
नारायण सान्याल से बिनायक 33 बार मिले थे, लेकिन वे सारी मुलाकातें जेल
अधिकारियों की मौजूदगी में हुईं थीं।
सान्याल की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफों को लेकर ही ये मुलाकातें हुई थीं और
जेल अधिकारियों के सामने दोनों हिंदी में बात करते थे, इस बात को जेलरों ने
गवाही में भी माना है। बिनायक के पास सान्याल के जो तीन पत्र मिले हैं वे
भी सान्याल की स्वास्थ्य संबंधी तकलीफों के बारे में ही हैं। बिनायक को आम
आदिवासी के साथ सलवा जुड़ूम में किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने
की सजा मिली है। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन डीजीपी ने 2006 में खुलेआम कहा था
कि सरकार का विरोध करने वाले कुछ लोगों को सबक सिखाया जाएगा।