चौदह लाख मौत, जिन्हें टाला जा सकता था

नई दिल्ली.
भारत में एक साल के दौरान करीब 14 लाख नवजात शिशुओं की मौत पांच ऐसी
बीमारियों की वजह से हुई, जिनका इलाज सामान्य रूप से हर जगह मौजूद हैं।
करीब आठ शिशु तो एक माह की आयु भी पूरी नहीं कर पाए। इस ताजा अध्ययन से
नवजात शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के प्रयासों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।




भारत में पांच साल की उम्र से छोटे करीब 23 लाख बच्चों की मौत हुई। इनमें
14 लाख बच्चों की मौत निमोनिया, डायरिया, समय पूर्व जन्म, कम वजन, प्रसव के
दौरान संक्रमण और दम घुटने की वजह से हुई। भारत के रजिस्ट्रार जनरल द्वारा
कराए गए इस अध्ययन के ये आंकड़े 2005 के हैं। ग्लोबल हेल्थ रिसर्च सेंटर
के डायरेक्टर प्रो. प्रभात झा के अनुसार ज्यादातर बच्चों की मौत को टाला जा
सकता था।




इस अध्ययन का लेंसेट जरनल के ताजा अंक में प्रकाशन किया गया है। बच्चों की
मौत के आंकड़े दो भागों में बांटे गए हैं, जिसमें से एक भाग महीनेभर के
बच्चों का है, जबकि दूसरा हिस्सा एक माह से लेकर 59 माह के बच्चों का है।
आंकड़े बताते हैं कि भारत में पांच साल से छोटे बच्चों की मौत का आंकड़ा
दुनिया के औसत के मुकाबले 20 फीसदी ज्यादा है।




पांच साल से छोटे बच्चों को निमोनिया-डायरिया से खतरा




अध्ययन के मुताबिक एक माह से ज्यादा और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की
ज्यादातर मौत निमोनिया और डायरिया की वजह से हुई। नवजात शिशुओं की आठ लाख
मौत में से ज्यादातर समय पूर्व जन्म, कम वजन और प्रसव से संबंधित
परेशानियों के कारण हुई।




नवजात लड़कों पर खतरा, बाद में लड़कियों पर




अध्ययन से चौंकाने वाली जानकारी यह मिली कि सालभर में एक माह से छोटे करीब
5.6 लाख लड़कों की मौत हुई, जबकि इसी आयु में 4.4 लाख लड़कियां बचाई नहीं
जा सकीं। एक माह से पांच साल तक के बच्चों में लड़कियों की मौत का आंकड़ा
लड़कों की मौत के आंकड़े से आगे निकल गया।

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