शिक्षा का हाल बेहाल, पढ़ाई-लिखाई से ज्यादा छुट्टियों की भरमार

रांची.
राज्य में प्राथमिक शिक्षा का बुरा हाल है। इसका प्रमाण इस साल शिक्षकों
के 254 में से 100 दिन गैर शैक्षणिक कार्य करने से लग सकता है। सरकार
गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा का दावा तो करती है, पर शिक्षकों को जनगणना
(साल में दो बार), मतदाता सूची संशोधन, वोटर आईडी या पंचायत चुनाव में लगा
देती है। आगामी 15 जनवरी से ये शिक्षक फिर से जनगणना कार्य में लगा दिए
जाएंगे।




शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कार्य में लगाने से प्राथमिक शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। उन्हें सिर्फ चुनाव में लगाया जाना चाहिए।


राममूर्ति ठाकुर, महासचिव, प्रा.शि.संघ




220 कार्य दिवस जरूरी




अनिवार्य शिक्षा कानून के तहत स्कूल में 220 दिन पढ़ाई जरूरी




शिक्षकों के न रहने से औपचारिक रूप से ही खुलते हैं स्कूल




विद्यार्थियों की पढ़ाई को नुकसान, कोर्स भी पूरा नहीं हो पाता




कानून नहीं देता है आदेश




निशुल्क व अनिवार्य बाल शिक्षा अधिनियम 2009 के अनुसार पढ़ाई में बाधा न डालने का है निर्देश




शिक्षकों को जनगणना, विधानमंडल या संसद के निर्वाचन संबंधी कार्यो में नहीं लगाया जा सकता




कानून का नहीं होता है राज्य में पालन, शिक्षकों को पशु गणना (2009) के कार्य में भी लगाया गया




रही है मांग, ऐसे कार्यो में न लगाएं




प्रदेश के सभी प्राइमरी शिक्षक संघ वर्ष 2002 से ही शिक्षकों को गैर
शैक्षणिक कार्यो से मुक्त रखने की मांग करते रहे हैं। शिक्षकों को तर्क है
कि इससे प्राइमरी शिक्षा का स्तर सुधरेगा। अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ
कई बार सीएम, शिक्षा मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और सरकारी अधिकारियों से
मिलकर ज्ञापन दे चुका है, मगर कोई कार्रवाई नहीं होती।

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