रायपुर.जेल
में बंद माओवादी नेता नारायण सान्याल से उनके इलाज को लेकर डॉ. बिनायक सेन
की मुलाकात को उनका कसूर बना दिया गया। डॉ. सेन ने ये मुलाकातें सिर्फ एक
डॉक्टर के बतौर ही नहीं, बल्कि सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी
की थीं। इसे छत्तीसगढ़ प्रशासन ने देशद्रोह बनाकर पेश किया।
सबूतों पर एक नजर
> डॉ. सेन ने 17 महीनों के दौरान सान्याल से 33 मुलाकातें कीं। इसके लिए
जेल प्रशासन ने उन्हें बाकायदा अनुमति दी थी। आवेदन करते समय डॉ. सेन ने
पीयूसीएल (सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित संस्था पीपुल्स यूनियन
फॉर सिविल लिबर्टीज) से जुड़ाव को भी नहीं छुपाया था।
> डॉ. सेन ने पीयूसीएल के लैटरहेड पर ही जेल प्रशासन को अपना आवेदन दिया
था। जिस पर उन्हें सान्याल और दूसरे कैदियों से मिलने की इजाजत दी गई।
> रायपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र जज बीपी वर्मा ने सान्याल की
रिश्तेदार बुला सान्याल और डॉ. सेन के बीच फोन पर हुई बातचीत के टैप को
सान्याल के साथ डॉ. सेन के साजिशपूर्ण रिश्तों का सबूत माना था।
-24 दिसंबर को दिए गए फैसले में कई जगह जेल में दर्ज रिकॉर्ड का हवाला दिया
गया, जिसमें डॉ. सेन को सान्याल का रिश्तेदार बताया गया है।
> डॉ. सेन की सान्याल से मुलाकातों का जेल प्रशासन के पास पूरा ब्योरा रहता था।
-ऐसे में यह लगता है कि डॉ. सेन के बजाय जेल के अधिकारियों ने ही ये रिकॉर्ड तैयार किए।
-फैसले की आलोचना करने वालों का कहना है कि डॉ. सेन को सीपीआई (माओवादी) का
करीबी बताया गया है, जिसका आधार दो पुलिसवालों का निराधार बयान है। बयान
के मुताबिक डॉ. सेन और उनकी पत्नी डॉ. इलिना सेन ने कट्टर माओवादी शंकर
सिंह और अमिता श्रीवास्तव की मदद की थी।
-डॉ. सेन ने बताया था कि शंकर उनकी पत्नी के एनजीओ रूपांतर में नौकरी करते
हैं। उनकी पत्नी इलिना ने ही एक दोस्त के कहने पर अमिता श्रीवास्तव को
स्कूल में नौकरी दिलाने में मदद की थी।
-डॉ. सेन पर आए फैसले को सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील कोलिन गोंजाल्वेज ने
सर्वोच्च अदालत के आदेशों को नजरअंदाज करने वाला बताया। सुप्रीम कोर्ट ने
केदारनाथ सिंह विरुद्ध बिहार के मामले में कहा था कि देशद्रोह के आरोपों को
संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के संदर्भ में
भी परखना चाहिए।
-देशद्रोह का अपराध तभी साबित होताहै, जब राज्य के खिलाफ बगावत फैलाने का
असर सीधे तौर पर हिंसा और कानून-व्यवस्था के गंभीर उल्लंघन के रूप में
सामने आए।
-इससे कम कुछ भी किया गया या कहा गया, देशद्रोह नहीं माना जा सकता। सेशन
कोर्ट के फैसले में डॉ. सेन को लेकर यह तय नहीं हो पाया कि उन्होंने आखिर
ऐसा क्या किया, जिससे राज्य में हिंसा और कानून-व्यवस्था का खतरा पैदा हो
गया।
में बंद माओवादी नेता नारायण सान्याल से उनके इलाज को लेकर डॉ. बिनायक सेन
की मुलाकात को उनका कसूर बना दिया गया। डॉ. सेन ने ये मुलाकातें सिर्फ एक
डॉक्टर के बतौर ही नहीं, बल्कि सक्रिय मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में भी
की थीं। इसे छत्तीसगढ़ प्रशासन ने देशद्रोह बनाकर पेश किया।
सबूतों पर एक नजर
> डॉ. सेन ने 17 महीनों के दौरान सान्याल से 33 मुलाकातें कीं। इसके लिए
जेल प्रशासन ने उन्हें बाकायदा अनुमति दी थी। आवेदन करते समय डॉ. सेन ने
पीयूसीएल (सर्वोदय नेता जयप्रकाश नारायण द्वारा गठित संस्था पीपुल्स यूनियन
फॉर सिविल लिबर्टीज) से जुड़ाव को भी नहीं छुपाया था।
> डॉ. सेन ने पीयूसीएल के लैटरहेड पर ही जेल प्रशासन को अपना आवेदन दिया
था। जिस पर उन्हें सान्याल और दूसरे कैदियों से मिलने की इजाजत दी गई।
> रायपुर के अतिरिक्त जिला एवं सत्र जज बीपी वर्मा ने सान्याल की
रिश्तेदार बुला सान्याल और डॉ. सेन के बीच फोन पर हुई बातचीत के टैप को
सान्याल के साथ डॉ. सेन के साजिशपूर्ण रिश्तों का सबूत माना था।
-24 दिसंबर को दिए गए फैसले में कई जगह जेल में दर्ज रिकॉर्ड का हवाला दिया
गया, जिसमें डॉ. सेन को सान्याल का रिश्तेदार बताया गया है।
> डॉ. सेन की सान्याल से मुलाकातों का जेल प्रशासन के पास पूरा ब्योरा रहता था।
-ऐसे में यह लगता है कि डॉ. सेन के बजाय जेल के अधिकारियों ने ही ये रिकॉर्ड तैयार किए।
-फैसले की आलोचना करने वालों का कहना है कि डॉ. सेन को सीपीआई (माओवादी) का
करीबी बताया गया है, जिसका आधार दो पुलिसवालों का निराधार बयान है। बयान
के मुताबिक डॉ. सेन और उनकी पत्नी डॉ. इलिना सेन ने कट्टर माओवादी शंकर
सिंह और अमिता श्रीवास्तव की मदद की थी।
-डॉ. सेन ने बताया था कि शंकर उनकी पत्नी के एनजीओ रूपांतर में नौकरी करते
हैं। उनकी पत्नी इलिना ने ही एक दोस्त के कहने पर अमिता श्रीवास्तव को
स्कूल में नौकरी दिलाने में मदद की थी।
-डॉ. सेन पर आए फैसले को सुप्रीम कोर्ट में उनके वकील कोलिन गोंजाल्वेज ने
सर्वोच्च अदालत के आदेशों को नजरअंदाज करने वाला बताया। सुप्रीम कोर्ट ने
केदारनाथ सिंह विरुद्ध बिहार के मामले में कहा था कि देशद्रोह के आरोपों को
संविधान द्वारा दिए गए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के संदर्भ में
भी परखना चाहिए।
-देशद्रोह का अपराध तभी साबित होताहै, जब राज्य के खिलाफ बगावत फैलाने का
असर सीधे तौर पर हिंसा और कानून-व्यवस्था के गंभीर उल्लंघन के रूप में
सामने आए।
-इससे कम कुछ भी किया गया या कहा गया, देशद्रोह नहीं माना जा सकता। सेशन
कोर्ट के फैसले में डॉ. सेन को लेकर यह तय नहीं हो पाया कि उन्होंने आखिर
ऐसा क्या किया, जिससे राज्य में हिंसा और कानून-व्यवस्था का खतरा पैदा हो
गया।