लुधियाना।
मजदूरों की का सबसे भारी असर सूबे की औद्योगिक राजधानी लुधियाना पर पड़ा
है। फैक्ट्रियों, कंपनियों के दरवाजे पर मजदूरों की वेकेंसी के बोर्ड लगे
हुए हैं। उद्यमियों के मुताबिक मजदूरों की आवक में तीस से पैंतीस फीसदी तक
की कमी आई है। यूपी,बिहार से आने वाले मजदूरों को नरेगा ने मोहा तो हिमाचल
प्रदेश, जम्मू और उत्तराखंड से आने वाले मजदूरों ने भी कदम खींच लिए हैं।
लुधियाना के हालात यह हैं कि दरवाजे पर भर्ती का बोर्ड टांगने वाली
कंपनियों के प्रबंधक मजदूरों की तलाश में रेलवे स्टेशनों पर स्टाल लगाने से
लेकर यूपी, बिहार से ही लेबरों की बुकिंग की जुगत लगा रहे हैं। मजदूरों की
लगातार कम होती आवक पर नजर रख रहे विशेषज्ञों के मुताबिक आवक में कमी से
गंभीर समस्या अन्य राज्यों से मजदूरों का वापस नहीं आना है। पहले जहां एक
तय समय और लगभग महीने भर की निर्धारित समय सीमा के लिए मजदूरों की वापसी
होती थी वहीं अब मजदूर नरेगा में भाग रहे हैं।
लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एससी रलहन के मुताबिक इंडस्ट्री
इस संकट से बाहर निकलने की राह तलाश कर रही है। आधुनिक मशीनरी और
कंप्यूटराइजेशन के जरिए कुछ कंपनियों ने इसकी शुरूआत की है। हालांकि
मजदूरों का सौ फीसदी विकल्प मुश्किल है।
लाकड़ा इंडस्ट्रीज लि. के चेयरमैन दिनेश लाकड़ा का कहना है कि मजदूरों की
कमी का संकट हर रोज बढ़ रहा है। हालात न सुधरे तो कई इंडस्ट्री संकट की
भेंट चढ़ जाएंगी। स्टाल लगा कर मजदूरों की भर्ती या फिर कुछ रुपये अधिक
देकर अपनी ओर आकर्षित करना स्थाई हल नहीं है। इंडस्ट्री को बचाने के लिए
बाहर से आने वाले मजदूरों को सरकार की ओर से आवास और सुरक्षा की सुविधा
मुहैया करानी होगी । ताकि नरेगा और तमाम राज्यों द्वारा दी जाने वाली छूट
के मोहजाल से मजदूरों को निकाला जा सके।
मजदूरों की का सबसे भारी असर सूबे की औद्योगिक राजधानी लुधियाना पर पड़ा
है। फैक्ट्रियों, कंपनियों के दरवाजे पर मजदूरों की वेकेंसी के बोर्ड लगे
हुए हैं। उद्यमियों के मुताबिक मजदूरों की आवक में तीस से पैंतीस फीसदी तक
की कमी आई है। यूपी,बिहार से आने वाले मजदूरों को नरेगा ने मोहा तो हिमाचल
प्रदेश, जम्मू और उत्तराखंड से आने वाले मजदूरों ने भी कदम खींच लिए हैं।
लुधियाना के हालात यह हैं कि दरवाजे पर भर्ती का बोर्ड टांगने वाली
कंपनियों के प्रबंधक मजदूरों की तलाश में रेलवे स्टेशनों पर स्टाल लगाने से
लेकर यूपी, बिहार से ही लेबरों की बुकिंग की जुगत लगा रहे हैं। मजदूरों की
लगातार कम होती आवक पर नजर रख रहे विशेषज्ञों के मुताबिक आवक में कमी से
गंभीर समस्या अन्य राज्यों से मजदूरों का वापस नहीं आना है। पहले जहां एक
तय समय और लगभग महीने भर की निर्धारित समय सीमा के लिए मजदूरों की वापसी
होती थी वहीं अब मजदूर नरेगा में भाग रहे हैं।
लुधियाना हैंड टूल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एससी रलहन के मुताबिक इंडस्ट्री
इस संकट से बाहर निकलने की राह तलाश कर रही है। आधुनिक मशीनरी और
कंप्यूटराइजेशन के जरिए कुछ कंपनियों ने इसकी शुरूआत की है। हालांकि
मजदूरों का सौ फीसदी विकल्प मुश्किल है।
लाकड़ा इंडस्ट्रीज लि. के चेयरमैन दिनेश लाकड़ा का कहना है कि मजदूरों की
कमी का संकट हर रोज बढ़ रहा है। हालात न सुधरे तो कई इंडस्ट्री संकट की
भेंट चढ़ जाएंगी। स्टाल लगा कर मजदूरों की भर्ती या फिर कुछ रुपये अधिक
देकर अपनी ओर आकर्षित करना स्थाई हल नहीं है। इंडस्ट्री को बचाने के लिए
बाहर से आने वाले मजदूरों को सरकार की ओर से आवास और सुरक्षा की सुविधा
मुहैया करानी होगी । ताकि नरेगा और तमाम राज्यों द्वारा दी जाने वाली छूट
के मोहजाल से मजदूरों को निकाला जा सके।