नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मनरेगा योजना लागू करने में नाकाम रहने
लिए केंद्र और उड़ीसा सरकार को दोषी करार दिया है। शीर्ष अदालत ने गुरुवार
को पूछा कि ग्रामीणों को रोजगार की गारंटी देने वाली इस योजना की वित्तीय
अनियमितता की जांच सीबीआइ को क्यों नहीं सौंप दी जाए?
प्रधान न्यायाधीश एस.एच. कपाड़िया की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र और
उड़ीसा को इस योजना को लागू करने में असफल रहने के लिए दोषी करार दिया। पीठ
ने कहा कि हम यह मानने को विवश हैं कि केंद्र सरकार और उड़ीसा सरकार प्रथम
दृष्टया महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना गारंटी योजना के
प्रावधानों को प्रभावी और उद्देश्यपूर्ण ढंग से लागू करने में नाकाम रही
हैं।इसका परिणाम यह हुआ है कि जिस समुदाय को रोजगार और पैसे पाने का हक था
वह इससे वंचित रह गया। इस पीठ में न्यायाधीश के.एस. राधाकृष्णन और स्वतंत्र
कुमार भी थे।
पीठ ने उड़ीसा के मुख्य सचिव और केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के
अतिरिक्त सचिव को तीन हफ्तों के अंदर दिशा निर्देशों को लागू करने संबंधी
अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को कहा। साथ ही दोनों को उसी शपथ पत्र में सीबीआइ
जांच के बारे में जवाब दाखिल करने को कहा।
पीठ ने दोनों सरकारों से अलग से ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना को लागू
करने से जुड़े बारह बिंदुओं पर जवाब मांगा। अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल इंदिरा
जयसिंह ने कहा, ‘हम सीबीआइ जांच चाहते हैं। हमारी ओर से सीबीआइ से आग्रह
किया जा चुका है।’ उन्होंने कहा कि उड़ीसा की सरकार दिशा निर्देशों को लागू
करने के खिलाफ है। हम लोगों को राज्य सरकार से विरोध का सामना करना पड़ रहा
है। राज्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे दिशा निर्देशों को नियम में बदल
दें लेकिन उड़ीसा सरकार ऐसा नहीं कर रही है।