पर्यावरण में बदलाव से खेती को बचाने का प्रयास

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो ]। घरेलू किसानों को पर्यावरण में बदलाव से
उनके खेतों पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव को खत्म करने के लिए सरकार 350 करोड़
रुपये की लागत से एक कार्यक्रम शुरू करने वाली है। इस राशि का इस्तेमाल
मुख्य तौर पर बदलते पर्यावरण से कृषि कार्यो पर पड़ने वाले नुकसान और इसका
समाधान खोजने में किया जाएगा।

इसके तहत देश में कई शोध संस्थान खोले जाएंगे, जो किसानों के साथ मिलकर
पर्यावरण के असर को कम करने में मदद करेंगे। इस कार्यक्रम से एक लाख
किसानों को सीधे तौर पर फायदा होगा। बुधवार को कैबिनेट की आर्थिक मामलों की
समिति [सीसीईए] की बैठक में इस संबंध में एक प्रस्ताव को हरी झंडी दिखाई
गई।

सरकारी सूत्रों के मुताबिक यह कार्यक्रम लंबी अवधि के लिए कृषि नीति
बनाने में मदद देगा। खास तौर पर पर्यावरण के बदलते मिजाज को देखते हुए किस
तरह की फसलों का उत्पादन किया जाए और पशुधन व मछली उत्पादन के क्षेत्र में
क्या एहतियाती कदम उठाए जाएं, इसका भी पता चल सकेगा।

कार्यक्रम को सफल बनाने में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान [आइसीएआर] के
सात प्रमुख अनुसंधान केंद्रों की भूमिका अहम होगी। कार्यक्रम की शुरुआत
देश के उन 100 जिलों से की जाएगी, जहां पर्यावरण में बदलाव का असर सबसे
ज्यादा देखने को मिला है।

यह कार्यक्रम अगले दो वित्त वर्षो के दौरान लागू किया जाएगा। पहले वर्ष
में जिन जिलों में इस बारे में अनुसंधान किया जाना है वहां अत्याधुनिक
उपकरण वगैरह लगाए जाएंगे। इस पर 200 करोड़ रुपये की लागत आएगी। कार्यक्रम के
तहत सूखे व बाढ़ का फसलों और पशुधन पर पड़ने वाले असर की गहनता से जांच की
जाएगी। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि प्राकृतिक आपदाओं का सामना करने के लिए
किस तरह के फसल या पशुधन को विकसित करना चाहिए।

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