नई दिल्ली, जागरण संवाददाता: राजधानी के रैन बसेरों में मूलभूत
सुविधाएं देने के लिए दिल्ली नगर निगम , नई दिल्ली नगर पालिका परिषद व
दिल्ली जल बोर्ड द्वारा आपस में तालमेल न बनाए जाने पर उच्च न्यायालय ने
निराशा जाहिर की है। अदालत ने गरीबों के लिए बनाए एक अस्थाई रैन बसेरों को
दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा ढहाए जाने पर भी नाराजगी जताते हुए एमसीडी,
एनडीएमसी, डीडीए व जलबोर्ड से तीन दिन के भीतर आपसी तालमेल के साथ आवश्यक
सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति मनमोहन की खंडपीठ ने कहा कि
रैन बसेरों में कोई सुविधा नहीं दी गई है। पानी के टैंक दूषित है और इनमें
वह मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है जिससे कोई आदमी वहां पर आत्म-सम्मान के साथ
रह सके।
अदालत ने कहा कि देखने में आया है कि विभिन्न नागरिक निकायों के
अधिकारियों के बीच तालमेल नहीं है। इसलिए यह इनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह
आपस में तालमेल बिठाए और गरीब लोगों को दिल्ली की ठंड से बचाने के लिए
सुविधाएं उपलब्ध कराए। अदालत ने कहा कि संबधित अधिकारियों की यह जिम्मेदारी
बनती है कि वह सर्दी को ध्यान में रखते हुए गरीबों को शेल्टर उपलब्ध
कराएं। डीडीए से जल्द 84 अस्थाई शेल्टर होम बनाकर चालू करने के निर्देश
देते हुए अदालत ने दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव को एमसीडी, डीडीए, एनडीएमसी,
डीजेबी और दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारी के
साथ 20 दिसंबर को इस बाबत एक बैठक करने की बात कही है।
खंडपीठ ने दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण की सदस्य सचिव को कहा है कि वह
एक सप्ताह के अंदर शेल्टर होम का दौरा करे और उनकी स्थिति के बारे में
अदालत में रिपोर्ट दायर करे।
विदित हो कि अदालत ने इस साल जनवरी में कुछ शेल्टर होम को गिराने के
संबंध में मीडिया में छपी खबरों पर स्वत: संज्ञान लिया था और कहा था कि
गरीबों के लिए शेल्टर होम बनाए जाए।