रांची
रिम्स के सर्जरी विभाग के डॉक्टरों के सामने एक लाचार बाप पिछले कई दिनों
से अपनी बेटी की जान की भीख मांग रहा है। लेकिन धरती के भगवान कहलाने वाले
डॉक्टर उसकी हालत देखकर पसीज नहीं रहे हैं।
गढ़वा के जनार्दन सिंह (बदला हुआ नाम) नामक इस शख्स की आंखें रोते-रोते सूज
चुकी है। उसकी छह वर्षीय बेटी रिंकी के लीवर में पानी भरा हुआ है। हालत
दिन पर दिन खराब होती जा रही है। डॉक्टर अस्पताल के ऑपरेशन किट्स से सर्जरी
करने को तैयार नहीं हैं और जनार्दन की हर गुहार पर रेडिमेड जुमला दुहरा
रहे हैं कि बाजार से किट्स खरीदकर लाओ तभी ऑपरेशन होगा। दूसरी ओर, जनार्दन
के लिए दो जून की रोटी भी मुहाल है। वह और उसकी पत्नी के साथ-साथ बेटी
रिंकी भी एचआईवी पीड़ित है। जनार्दन पूछता है कि क्या एचआईवी पीड़ित को
जीने का अधिकार नहीं है? डॉक्टर रिंकी का ऑपरेशन नहीं करना चाह रहे हैं।
यहां तक कि शिशु वार्ड से भी घर ले जाने के लिए दबाव बना रहे हैं।
रिम्स के डॉक्टरों की इस करतूत के सामने जहां मानवता शर्मसार हो रही है,
वहीं एड्स जागरूकता के नाम पर हर साल होम होने वाले सैकड़ों करोड़ रुपए भी
बेमानी प्रतीत होने लगे हैं। गरीबी और बीमारी के दोहरे मार से घायल एक बाप
अपने उम्मीदों के सहारे को यह जानते हुए टूटता देखने को मजबूर है कि, उसकी
बेटी चंगा हो सकती थी, अगर उसके पास पैसा होता। क्या प्रदेश के स्वास्थ्य
महकमे के आला अधिकारी इस लाचार बाप के साथ न्याय करेंगे?
रिम्स के सर्जरी विभाग के डॉक्टरों के सामने एक लाचार बाप पिछले कई दिनों
से अपनी बेटी की जान की भीख मांग रहा है। लेकिन धरती के भगवान कहलाने वाले
डॉक्टर उसकी हालत देखकर पसीज नहीं रहे हैं।
गढ़वा के जनार्दन सिंह (बदला हुआ नाम) नामक इस शख्स की आंखें रोते-रोते सूज
चुकी है। उसकी छह वर्षीय बेटी रिंकी के लीवर में पानी भरा हुआ है। हालत
दिन पर दिन खराब होती जा रही है। डॉक्टर अस्पताल के ऑपरेशन किट्स से सर्जरी
करने को तैयार नहीं हैं और जनार्दन की हर गुहार पर रेडिमेड जुमला दुहरा
रहे हैं कि बाजार से किट्स खरीदकर लाओ तभी ऑपरेशन होगा। दूसरी ओर, जनार्दन
के लिए दो जून की रोटी भी मुहाल है। वह और उसकी पत्नी के साथ-साथ बेटी
रिंकी भी एचआईवी पीड़ित है। जनार्दन पूछता है कि क्या एचआईवी पीड़ित को
जीने का अधिकार नहीं है? डॉक्टर रिंकी का ऑपरेशन नहीं करना चाह रहे हैं।
यहां तक कि शिशु वार्ड से भी घर ले जाने के लिए दबाव बना रहे हैं।
रिम्स के डॉक्टरों की इस करतूत के सामने जहां मानवता शर्मसार हो रही है,
वहीं एड्स जागरूकता के नाम पर हर साल होम होने वाले सैकड़ों करोड़ रुपए भी
बेमानी प्रतीत होने लगे हैं। गरीबी और बीमारी के दोहरे मार से घायल एक बाप
अपने उम्मीदों के सहारे को यह जानते हुए टूटता देखने को मजबूर है कि, उसकी
बेटी चंगा हो सकती थी, अगर उसके पास पैसा होता। क्या प्रदेश के स्वास्थ्य
महकमे के आला अधिकारी इस लाचार बाप के साथ न्याय करेंगे?