चंडीगढ़.
भारत की प्रगति दर बेशक 9 फीसदी है, लेकिन भारत के किसान खेती छोड़ खेतों
और मंडियों में मजदूरी करने को मजबूर हैं। अकेले पंजाब में ही हर साल दस
हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं।
पंजाबी यूनिवर्सिटी की ओर से करवाई गई यह स्टडी रिपोर्ट शुक्रवार को पंजाब
यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के साथ खाद्यान्न सुरक्षा और किसानों की
आत्महत्या विषय पर करवाए गए सेमिनार में क्रिड के डायरेक्टर डॉ. सुच्च सिंह
गिल साझा कर रहे थे। वे सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए।
इस मौके पर यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. आरसी सोबती, प्रो जसवाल, हेमंत
गोस्वामी और खेती विरासत मिशन के उमेंद्र दत्त भी मौजूद थे। डॉ. गिल ने
बताया कि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने भी चालीस गांवों की एक अलग स्टडी
करवाई है, जिसमें पाया गया है कि खेती छोड़ने वाले 20 से 25 फीसद लोग कर्ज
के बोझ से निकलने के अपनी जमीनें बेचकर दूसरे के खेतों में मजदूरी कर रहे
हैं या फिर छोटी मंडियों में यही काम कर रहे हैं। 20 फीसदी लोगों ने खेती
छोड़कर डेयरी, ट्रांसपोर्ट और मैरिज पैलेस खोल लिए हैं और 12 फीसदी आढ़ती
बन गए हैं।
जहरीली हो गई हैं फसलें
डॉ. गिल ने विद्यार्थियों को बताया कि किन परिस्थितियों में किसान कर्ज के
जाल में फंसते हैं। किसान किस तरह के घरेलू तनाव में जीते हैं, जब कोई हल
नहीं निकलता तो वे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। डा. गिल ने कहा कि
पंजाब के किसानों ने केवल अपने ऊपर कर्ज चढ़ा लिया है, बल्कि जमीन, पानी और
वातावरण भी बर्बाद कर लिया है। पैदावार रासायनिक खादों के अत्याधिक प्रयोग
से जहरीली हो गई है।
देश में हर रोज 50 किसान कर रहे आत्महत्या
सेमिनार में हेमंत गोस्वामी ने नेशनल क्राइम ब्यूरो के आत्महत्या संबंधी
आंकड़े देते हुए बताया कि देश में हर रोज 50 किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं
और यह आंकड़ा पिछले पांच वर्षो मंे दुगना हो गया है। प्रो. आरसी सोबती ने
कहा कि नौ फीसदी ग्रोथ रेट से विकास का मतलब यह नहीं है कि देश तरक्की कर
रहा है। देश की तरक्की उसके मानव स्रोतों की उन्नति से पता चलती है। अमीर
और गरीबों के बीच की दूरी ही असंतोष बढ़ा रही है। इस मौके पर विद्यार्थियों
ने भी कई अहम सवाल पूछे और कहा कि शिक्षा के सिस्टम ने विद्यार्थियों को
उनके खेतों से दूर कर दिया है।
खेती सेक्टर को किया गया नजरअंदाज
डॉ. गिल ने कहा कि सवाल केवल खाद्यान्न सुरक्षा का नहीं, बल्कि शरीर के लिए
गुणवत्ता वाला फूड देना भी है। उन्होंने कहा कि उदारवाद के दौर में खेती
सेक्टर को नजरअंदाज कर दिया गया है, इसकापरिणाम यह हुआ है कि न तो नए
बीजों के लिए कोई रिसर्च हो रही है और यदि थोड़ी बहुत हो रही है तो
यूनिवर्सिटीज इसे किसानों तक पहुंचाने में नाकाम रही हैं। न तो उनके पास
पर्याप्त स्टाफ है और न ही खेतीबाड़ी विभाग के पास।
भारत की प्रगति दर बेशक 9 फीसदी है, लेकिन भारत के किसान खेती छोड़ खेतों
और मंडियों में मजदूरी करने को मजबूर हैं। अकेले पंजाब में ही हर साल दस
हजार किसान खेती छोड़ रहे हैं।
पंजाबी यूनिवर्सिटी की ओर से करवाई गई यह स्टडी रिपोर्ट शुक्रवार को पंजाब
यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों के साथ खाद्यान्न सुरक्षा और किसानों की
आत्महत्या विषय पर करवाए गए सेमिनार में क्रिड के डायरेक्टर डॉ. सुच्च सिंह
गिल साझा कर रहे थे। वे सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए।
इस मौके पर यूनिवर्सिटी के वीसी डॉ. आरसी सोबती, प्रो जसवाल, हेमंत
गोस्वामी और खेती विरासत मिशन के उमेंद्र दत्त भी मौजूद थे। डॉ. गिल ने
बताया कि पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने भी चालीस गांवों की एक अलग स्टडी
करवाई है, जिसमें पाया गया है कि खेती छोड़ने वाले 20 से 25 फीसद लोग कर्ज
के बोझ से निकलने के अपनी जमीनें बेचकर दूसरे के खेतों में मजदूरी कर रहे
हैं या फिर छोटी मंडियों में यही काम कर रहे हैं। 20 फीसदी लोगों ने खेती
छोड़कर डेयरी, ट्रांसपोर्ट और मैरिज पैलेस खोल लिए हैं और 12 फीसदी आढ़ती
बन गए हैं।
जहरीली हो गई हैं फसलें
डॉ. गिल ने विद्यार्थियों को बताया कि किन परिस्थितियों में किसान कर्ज के
जाल में फंसते हैं। किसान किस तरह के घरेलू तनाव में जीते हैं, जब कोई हल
नहीं निकलता तो वे आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं। डा. गिल ने कहा कि
पंजाब के किसानों ने केवल अपने ऊपर कर्ज चढ़ा लिया है, बल्कि जमीन, पानी और
वातावरण भी बर्बाद कर लिया है। पैदावार रासायनिक खादों के अत्याधिक प्रयोग
से जहरीली हो गई है।
देश में हर रोज 50 किसान कर रहे आत्महत्या
सेमिनार में हेमंत गोस्वामी ने नेशनल क्राइम ब्यूरो के आत्महत्या संबंधी
आंकड़े देते हुए बताया कि देश में हर रोज 50 किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं
और यह आंकड़ा पिछले पांच वर्षो मंे दुगना हो गया है। प्रो. आरसी सोबती ने
कहा कि नौ फीसदी ग्रोथ रेट से विकास का मतलब यह नहीं है कि देश तरक्की कर
रहा है। देश की तरक्की उसके मानव स्रोतों की उन्नति से पता चलती है। अमीर
और गरीबों के बीच की दूरी ही असंतोष बढ़ा रही है। इस मौके पर विद्यार्थियों
ने भी कई अहम सवाल पूछे और कहा कि शिक्षा के सिस्टम ने विद्यार्थियों को
उनके खेतों से दूर कर दिया है।
खेती सेक्टर को किया गया नजरअंदाज
डॉ. गिल ने कहा कि सवाल केवल खाद्यान्न सुरक्षा का नहीं, बल्कि शरीर के लिए
गुणवत्ता वाला फूड देना भी है। उन्होंने कहा कि उदारवाद के दौर में खेती
सेक्टर को नजरअंदाज कर दिया गया है, इसकापरिणाम यह हुआ है कि न तो नए
बीजों के लिए कोई रिसर्च हो रही है और यदि थोड़ी बहुत हो रही है तो
यूनिवर्सिटीज इसे किसानों तक पहुंचाने में नाकाम रही हैं। न तो उनके पास
पर्याप्त स्टाफ है और न ही खेतीबाड़ी विभाग के पास।