वाशिंगटन.
भारत ने स्वतंत्रता के बाद से 2008 तक 20,556 अरब रुपए या करीब 20 लाख
करोड़ (462 बिलियन डॉलर) भ्रष्टाचार, अपराध और टेक्स चोरी के कारण गंवाई
है। वाशिंगटन में हुए एक अध्ययन के बाद भारत की छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर
पर और झटका लगने की आशंका बढ़ गई है।
वाशिंगटन के एक आर्थिक
मामलों के विशेषज्ञ समूह ग्लोबल फाइनेंशियस इंटिग्रिटी(जीएफआई) ने हाल ही
में जारी ‘द ड्राइवर्स एंड डायनामिक्स ऑफ इलिसिट फाइनेंशियल फ्लो फ्रॉम
इंडिया 1948-2008’ शीर्षक से जारी रिपोर्ट 1991 में भारत की सुधरती
अर्थव्यवस्था के बावजूद देश से बाहर अवैध रूप से भेजे जा रहे धन की मात्रा
काफी बढ़ी है।
अध्ययन में किए आंकलन के अनुसार भारत को कुल 462
बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है और यह इसमें से बड़ी रकम विदेश भेजी गई है।
भारतीय मुद्रा में यह रकम कुल 20,556,548,000,000 या करीब 20 लाख करोड़
रुपए होती है। भारत का विदेशों से कर्जा करीब 230 अमेरिकन डॉलर का है,
लेकिन यह अवैध धन उससे दुगना है।संस्था के संचालक रेमंड्स बेकर ने कहा कि
जाहिर है कि इतनी बड़ी रकम के देश से बाहर भेजे जाने के कारण ही भारत में
गरीब और गरीब हो गया है और अमीर और गरीब के बीच का अंतर काफी बढ़ गया है।
उन्होंने कहा कि 1948 के बाद से ही भारत के भ्रष्टाचारियों ने विकसित देशों
को छोड़कर उन देशों में धन जमा करना शुरू किया, जहां इस मामले में पूरी
गोपनीयता बरती जाती है। पहले इन देशों के बैंकों में जमा कुल रकम विश्व का
36.4 फीसदी हुआ करती थी, जो 2009 में बढ़कर 54.2 फीसदी हो गई है।
रिपोर्ट
तैयार करने में महत्वलपूर्ण भूमिका निभाने वाले अर्थशास्त्री डा डेव कार
ने कहा कि भारत की अवैध रूप से चल रही अर्थव्यवस्था कितनी बड़ी है यह इस
रिपोर्ट से जाहिर है।