सोल। दक्षिण कोरिया की इस्पात क्षेत्र की विशाल कंपनी पॉस्को की भारत
में 12 अरब डालर की परियोजनाओं के रास्ते में काफी अड़चनें आ रही हैं, पर इस
विवाद का भविष्य में भारत में दक्षिण कोरिया के निवेश पर असर नहीं पड़ेगा।
जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यहां आए
हैं, पर उनकी यात्रा के दौरान यह विवादास्पद मसला उठने की उम्मीद नहीं है।
सूत्रों ने कहा कि दक्षिण कोरिया की सरकार और पॉस्को का प्रबंधन इस बात
को अच्छी तरह से जानता है कि भारत में परियोजना को मंजूरी संबंधी कुछ मसले
हैं और भारत सरकार और उड़ीसा की सरकार इन्हें सुलझाने में जुटी हैं।
सूत्रों के अनुसार, ‘केंद्र और उड़ीसा सरकार इन मसलों को सुलझा रही हैं।
यहां बैठक के दौरान यह मसला उठने की उम्मीद नहीं है।’ पॉस्को ने जून, 2005
में जगतसिंहपुर जिले में पारादीप के पास 1.2 करोड़ टन सालाना उत्पादन
क्षमता का इस्पात संयंत्र लगाने के लिए उड़ीसा सरकार के साथ सहमति ज्ञापन
[एमओयू] पर दस्तखत किए थे। इस संयंत्र पर अनुमानत: 12 अरब डालर का निवेश
होना है।
सू़त्रों ने इस बात का खंडन किया कि पॉस्को विवाद की वजह से दक्षिण
कोरिया सरकार या यहां की कंपनियां आशंकित हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण
कोरिया की कंपनियां भारत में काफी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। ‘वे वहां
काफी मुनाफा कमा रही हैं और ज्यादा से ज्यादा परियोजनाओं पर उनकी निगाह
है।’
पॉस्को विवाद के बावजूद सैमसंग जैसी कोरियाई कंपनी भारत में निवेश बढ़ा
रही है। सूत्रों ने बताया कि सैमसंग चेन्नई में नई असेंबली लाइन लगा रही
है। उन्होंने कहा कि यहां की कंपनियों के सामने हुंदै माडल काफी हद तक
प्रचलित है।
हुंदै का चेन्नई के पास संयंत्र है, जिसमें भारतीय बाजार के लिए तीन
लाख कारों का उत्पादन होता है। जबकि वहां ढाई लाख से ज्यादा कारों का
उत्पादन दूसरे देशों को निर्यात के लिए किया जाता है।
सूत्रों ने कहा कि पॉस्को एक जटिल मामला है। पॉस्को संयंत्र के लिए
4,000 जमीन की जरूरत है और वहां पर्यावरण संबंधी मंजूरी मिलने में अड़चनें आ
रही हैं। दोनों देशों के आर्थिक संबंधों के बारे में सूत्रों ने कहा कि
भारत और दक्षिण कोरिया के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी करार :सेपा: ने बड़ी
संख्या में भारतीय पेशेवरों के लिए रास्ता खोल दिया है। खासकर सूचना
प्रौद्योगिकी क्षेत्र के पेशेवर अब आसानी से यहां आ सकते हैं।
चूंकि इस पेशे में अंग्रेजी का ज्ञान जरूरी है, इसलिए सैकड़ों आईटी
पेशेवर यहां पहले ही आ चुके हैं। अंग्रेजी शिक्षकों के लिए भी बाजार खुलना
शुरू हो गया है। पहले दक्षिण कोरिया अंग्रेजी भाषी देशों के शिक्षकों को
प्राथमिकता देते हैं और अब भारत से भी अंग्रेजी शिक्षक की नियुक्ति हो चुकी
है।