गन्ना पेराई पर असमंजस बरकरार

उत्तर प्रदेश में समय से गन्ना मूल्य की घोषणा के बावजूद राज्य की ज्यादातर चीनी मिलों ने अपने पेराई सत्र की शुरुआत का ऐलान नही किया है। पेराई सत्र में हो रही देरी ने गन्ना किसानों की परेशानी को बढ़ाने का काम किया है। गन्ने का खेत खाली न होने की दशा में राज्य में गेहंू की बुआई पिछड़ सकती है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसानों ने कोल्हू मालिकों और क्रशर यूनिटों को अपना गन्ना देने की शुरुआत कर दी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने गन्ने का दाम 205 रुपये प्रति क्विंटल तय कर दिया था। सरकार की ओर से घोषित कीमत न केवल सहकारी गन्ना किसान समिति को कम लग रही बल्कि चीनी मिल मालिकों ने देसी-विदेशी बाजार में गिरती कीमतों के मद्देनजर इसे ज्यादा बताया है।
चीनी मिल मालिक अगले सप्ताह बैठक कर कीमत के मामले में अपने रुख का खुलासा करेंगे। राज्य के निजी चीनी मिल मालिकों में कुछ ने ही अभी तक अपने पेराई का शेड्यूल सरकार के पास भेजा है। दूसरी ओर राज्य के गन्ना विकास विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ज्यादातर सरकारी चीनी मिलें पेराई का काम 25 नवंबर से शुरू करने की सहमति दे चुकी हैं जबकि निजी चीनी मिलों ने अपने पेराई शेड्यूल का अभी भी खुलासा नही किया है।
गन्ना पेराई सत्र में देरी को लेकर को लेकर चिंतित सरकार के अधिकारियों के साथ सोमवार को गन्ना मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने बैठक की। बैठक में बताया गया कि गाजियाबाद की मोदीनगर चीनी मिल का संचालन पिछले माह की 23 तारीख को प्रारंभ हो चुका है और बागपत की मलकपुर चीनी मिल आज अपना पेराई सत्र शुरू करेगी। प्रदेश की अधिकांश चीनी मिलों ने 15 नवंबर से 25 नवंबर तक की तारीख दी है। इस बार सहकारी क्षेत्र की 23 चीनी मिलें और निजी क्षेत्र की 105 चीनी मिलें गन्ना पेराई का कार्य करेंगी।
बैठक में बताया गया कि पिछले वर्ष के मुकाबले इस बार गन्ना क्षेत्रफल 17.88 लाख हेक्टेयर के मुकाबले 21.01 लाख हेक्टेयर अनुमानित है। इस प्रकार गन्ना उत्पादन भी 1051.26 लाख टन की तुलना में 1240 लाख टन होने का अनुमान है। बाढ़ के कारण गन्ना फसल को हुई क्षति के बावजूद चीनी का उत्पादन 60 लाख टन तक होने का अनुमान है।
उत्तर प्रदेश गन्ना किसान सहकारी समिति के अध्यक्ष अवधेश मिश्रा के मुताबिक बीते साल चीनी मिल मालिकों की ओर से दिए गए बोनस को शामिल करते हुए सरकार को गन्ने की कीमत का
निर्धारण करना चाहिए। उनका कहना है कि चीनी की कीमत को देखते हुए सरकार को मिलों को कम से कम पुरानी कीमत देने को कहना चाहिए

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