लखनऊ, जागरण ब्यूरो : सरकार के गन्ने के समर्थन मूल्य में 40 रुपए की
रिकार्ड बढ़ोत्तारी करने के अलावा खुले बाजार में चीनी मूल्य की स्थिरता ने
मिल मालिकों का जायका बिगाड़ दिया है। उहापोह में फंसा प्रबंधन मिल चलाने
से कतरा रहा है और नुकसान गन्ना किसानों को झेलना पड़ रहा है।
गत वर्ष गन्ना किसानों को अपनी मर्जी से 260-80 रुपए प्रति कुंतल तक
भुगतान देना मिल मालिकों के गले की फांस बना है। इसी आधार पर ही
मुख्यमंत्री मायावती को गन्ने के समर्थन मूल्य में 40 रुपए की वृद्धि का
निर्णय किया। इसनिर्णय का खुलकर विरोध करने से कतरा रहे मिल मालिक एक दो
दिन में अपनी रणनीति तय कर सरकार के सामने पक्ष प्रस्तुत करेंगे। उनका दावा
है कि गत वर्ष चीनी के दाम 29 से बढ़कर 44 रुपए तक पहुंचे, तब ही किसानों
को समर्थन मूल्य 165-70 रुपए से अधिक दाम देना संभव हो सका था। तब कम गन्ना
और रिकवरी बेहतर होना भी मिलों के पक्ष में था। इस बार हालात पक्ष में
नहीं है। बात वर्ष 2008-9 की करें तो गन्ने के 140-45 रुपए समर्थन मूल्य
में चीनी के दाम 28-30 रुपए प्रति किग्रा तक पहुंच गए थे। वर्ष 2007-8 में
73.19 लाख कुंतल उत्पादन होने के बाद चीनी 20-22 से नीचे नहीं गयी।
मौजूदा सत्र में मिलों के पेराई शुरू न करने के बाद भी चीनी के दामों
में कोई इजाफा न हो पाना खतरे की घंटी है। खुले बाजार में अर्से से चीनी
29-30 रुपए प्रति किग्रा उपलब्ध है जबकि बीते नवम्बर माह में चीनी ने उछाल
लेना शुरू कर दिया था और जनवरी में रेट बढ़कर 35 रूपए तक पहुंच गए थे। वर्ष
2008-9 की तुलना में इस वर्ष गन्ने का दाम शुरूआती दौर में ही 60-65 प्रति
कुंतल अधिक घोषित हो चुका है। गत वर्ष की तुलना में नवम्बर में गुड का भाव
भी लगभग सौ रुपए कुंतल कम है। ऐसे में मिलें पेराई शुरू करने से कतरा रही
है।
इसके अलावा चीनी मिलों पर सरकार ने प्रवेश कर की वसूली में सख्ती कर दी
है। कर चोरी रोकने के कड़े रुख से भी मिल मालिकों की सिरदर्दी बढ़ा दी है।
दो पीढ़ी से चीनी व्यवसाय से जुड़े दिनेश गोयल का कहना है कि चीनी के दाम की
स्थिरता मिलों को भारी पड़ सकता है। इस बार गन्ने की फसल का रकबा अधिक होने
के अलावा उत्पादकता बढ़ने के आसार है। साथ ही निर्यात पर रोक होना भी चीनी
उद्योग के लिए शुभ नहीं है।
गन्ने से रिकवरी कम व दाम अधिक होने के कारण घाटे की आशंका से घिरे मिल
संचालक पेराई न शुरू करने से कतरा रहे है। मुख्यमंत्री के निर्देश के
बावजूद सूबे की 131 मिलों में अभी पेराई शुरू नहीं हो पायी। जिसका लाभ उठा
रहे कोल्हू संचालक मनमाने मूल्य पर गन्ना खरीद रहे है। गेहूं की बोआई को
खेत खाली करने के लिए किसान 160-80 प्रति कुंतल के दाम पर गन्ना बेचने को
मजबूर है।
वर्ष गन्ना-लाख हेक्ट.चीनी-ला.टन
2005-6 22.50 55.45
2006-7 26.62 84.78
2007-8 28.50 73.19
2008-9 21.40 42.06
2009-10 20.15 51.80
2010-11 22.10 —–