तीन माह में कन्या भ्रूण हत्या के 11 मामले दर्ज

जालंधर . पीएनडीटी एक्ट सख्ती
से लागू करने के दावों के विपरीत मादा भ्रूण हत्याओं का सिलसिला थम नहीं
रहा। आरटीआई से हासिल सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले सवा साल में राज्य
में भ्रूण हत्या के सिर्फ 22 मामलों में कार्रवाई हुई। वर्ष 2010 के पहले
तीन महीने में भी 11 मामलों में ही कार्रवाई हो सकी।




1000 लड़कों के मुकाबले मात्र 896 लड़कियों की वर्तमान जन्म दर मादा भ्रूण
हत्या का दौर बेधड़क जारी रहने का खुद ही प्रमाण प्रस्तुत कर रहा है। इस
साल जनवरी में मादा भ्रूण हत्या के छह, फरवरी में दो और मार्च में तीन
मामले पकड़े गए। वर्ष 2009 में भी सिर्फ 11 केस ही दर्ज हो सके। यह हत्याएं
केवल ८ माह में हुई थीं। इस बारे पूरे पंजाब में केस दर्ज हैं।




पटियाला, जालंधर जैसे बड़े महानगर ही नहीं फतेहगढ़ साहिब, एसएएस नगर,
नवांशहर जैसे शहरों में भी ऐसे मामले अन्य क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा पाए
गए हैं। हत्या के बाद अधिकतर भ्रूण रेलवे लाईनों पर फैंके गए हैं।




राज्य सरकार द्वारा पीएनडीटी एक्ट को सख्ती से लागू किए जाने के बावजूद
भ्रूण हत्याएं न रूकना समाज के लिए चिंता का विषय है। अगर ऐसी ही हत्याएं
होती रही, तो भविष्य में लड़कियों के वजूद पर ही सवालिया निशान लग जाएगा।




यह है एक्ट




प्री कंसैप्शनल एंड प्री नटाल डायग्नोस्टिक टैक्नीक (प्रोहिबिशन ऑफ सैक्स
सलैक्शन) एक्ट 1994 देशभर में एक जनवरी 1996 को लागू हुआ था। इसके तहत लिंग
निर्धारित टैस्ट को गैर-कानूनी करार दिया गया। किसी भी स्वास्थ्य संस्थान
द्वारा लिंग निर्धारण टैस्ट करने या उसके विज्ञापन मात्र पर ही केस दर्ज
किया जाता है।




यदि कोई लिंग निर्धारण टैस्ट करता है तो उसे तीन साल तक की कैद और दस हजार
रुपये जुर्माने का प्रावधान है, यदि वह दोबारा ऐसा करता है तो एक्ट की धारा
23 के तहत उसे पांच साल की सजा और पचास हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता
है।




कमजोर एक्ट से हो रही हत्याएं : एडवोकेट भल्ला




केंद्र सरकार द्वारा भ्रूण हत्याओं को रोकने के मकसद से बनाया गया पीएनडीटी
एक्ट अभी कई पहलुओं से कमजोर है। राज्य सरकार ने अपने स्तर पर काफी सख्ती
की है, लेकिन केंद्र सरकार को भी एक्ट में संशोधन करके सजा के प्रावधान को
मजबूत करना चाहिए।




इसमें लिंग निर्धारण टैस्ट करने पर सजा की अवधि पांच साल से बढ़ाकर दस साल
तक होनी चाहिए और जुर्माना भी काफी ज्यादा होना चाहिए। ताकि सजा और मोटे
जुर्माने के डर से कोई भी ऐसा टैस्ट न करे। – एडवोकेट राजकुमार भल्ला।

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