अम्बाला. इंडस्ट्रियल मॉडल
टाउनशिप (आईएमटी) के लिए अम्बाला के छह गांवों की उपजाऊ जमीन के अधिग्रहण
की तैयारी में लगी सरकार ने पिछले वर्ष हुए नैनीताल सम्मेलन के निर्णय की
भी अनदेखी कर दी है।
गौरतलब है कि सितंबर, 2009 में नैनीताल में
कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन हुआ था। इस सम्मेलन
में यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने उपजाऊ जमीनों के अधिग्रहण पर चिंता
जताई थी। सम्मेलन में ही वाणिज्य मंत्री कमल नाथ ने राज्य सरकारों को आदेश
दिए थे कि बंजर जमीनों का अधिग्रहण किया जाए। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट भी
कई फैसलों में कह चुका है कि उद्योगों के लिए उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण न
किया जाए।
जमीन बचाने की लड़ाई लड़ने के लिए बनाई गई छह गांवों
की जमीन बचाओ संघर्ष समिति के प्रधान बलवंत सिंह कहते हैं कि कांग्रेस
शासित राज्य में ही नैनीताल सम्मेलन के निर्णय की परवाह नहीं की जा रही।
यहां प्रति एकड़ 25 से 30 क्विंटल धान की पैदावार होती है, जबकि औसतन 18 से
25 क्विंटल प्रति एकड़ गेहूं पैदा होता है। दिलचस्प बात यह है कि कुछ वर्ष
पहले प्रदेश सरकार ने वर्ल्ड बैंक की मदद से पंजोखरा माइनर का निर्माण
कराया था ताकि इस क्षेत्र की जमीनों की सिंचाई में मदद मिल सके। इसके
बावजूद सरकार इस क्षेत्र की जमीनों का अधिग्रहण करने पर तुली हुई है।
..तो बिगड़ेगा बहुतों का गणित
अधिग्रहण
से केवल वे किसान ही प्रभावित नहीं होंगे जिनकी जमीनें जाएंगी, बल्कि कृषि
आधारित दूसरे व्यवसायों से जुड़े लोग जैसे पशुपालक, डेयरी संचालक, बीज व
पेस्टिसाइड विक्रेता, मधुमक्खी पालक, ट्रैक्टर व कृषि उपकरण संचालक और
खेतिहर मजदूर भी प्रभावित होंगे।
इन गांवों में 80 प्रतिशत से
ज्यादा आबादी खेती या उससे जुड़े व्यवसाय से ही रोजी कमाती है और जमीनों के
अधिग्रहण के बाद इस क्षेत्र का पूरा सामाजिक ताना—बाना प्रभावित होने की
आशंका है। किसानों की जिस बात की सबसे ज्यादा चिंता है वो यह है कि सरकार
जिस रेट पर उनसे जमीन लेगी, उस पर वे दोबारा उतनी जमीन नहीं खरीद पाएंगे।
क्योंकि सरकार किसानों को प्रति एकड़ लगभग 15 लाख रुपए की दर से भुगतान
करेगी।
वर्ष 2021 तक के लिए तैयार मास्टर प्लान में इंडस्ट्रीयल
सेक्टर डेवलप करने का प्रावधान है। सरकार के स्तर पर आईएमटी के लिए जमीन
घटाने का निर्णय हो सकता है। मास्टर प्लान में संशोधन भी किया जा सकता है।
राजकुमार, डीटीपी, अम्बाला।