भोपाल. राजधानी से 15 किमी दूर
मेंडोरा गांव में गिद्ध बचाने के लिए बनाया जा रहा ‘वल्चर कंजर्वेशन
ब्रीडिंग सेन्टर’ खुद को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। वन विभाग 38 लाख
रु. फूंकने के बाद भी तय नहीं कर पाया कि सेंटर के संचालन के लिए हर साल
लगने वाले २६ लाख रु. कौन देगा? डीबी स्टार ने पड़ताल की तो सामने आया कि
जिम्मेदारों ने विदेशी धन के भरोसे गिद्ध बचाव योजना तो बना ली, लेकिन
क्रियान्वयन नहीं कर पाए।
सेंटर पर 4 छोटे व 1 बड़े पक्षी घर सहित स्टाफ के लिए आवास भी बनाए जा चुके
हैं। ये मार्च २क्१क् से बनकर तैयार हैं, लेकिन सुनसान पड़े हैं। ऐसे में
सवाल यह है कि मप्र शासन जब २क्क्७ में तय की गई राशि २६ लाख रु. ही नहीं
दे पा रहा है तो समय के साथ बढ़ती राशि कैसे देगा? ये जवाब किसी के पास
नहीं है।
आड़े आ गई आर्थिक मंदी
सेंटर के संचालन के लिए बाम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी को जिम्मा सौंपा
गया। बीएनएचएस इसके लिए ब्रिटेन की संस्था से आर्थिक मदद लेती है। इस बात
में पेंच तब फंसा जब बीएनएचएस क ो वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण यहां से
आर्थिक मदद मिलना कम हो गई। अब इसके द्वारा पिंजौर सहित देश के तीन
केन्द्रों का संचालन तो किया जा रहा है पर वन विहार के लिए आर्थिक मदद से
साफ इंकार कर दिया गया है।
अब बन गया गले की फांस..
मध्यप्रदेश शासन ने इसके लिए ५ एकड़ जमीन दे दी है, लेकिन हर साल जो २६
लाख खर्च होना है, उसकी जिम्मेदारी शासन भी नहीं लेना चाहता है। ऐसे में यह
सेंटर वन विभाग के लिए गले की फांस बन गया है। पहले यह केंद्र केरवा ईको
टूरिज्म सेंटर के पीछे बनना था, जिसके कारण यह एक साल लेट हो गया और
जैसे-तैसे जमीन मिली तो अब बजट राशि को लेकर माथापच्ची चल रही है।
मेंडोरा गांव में गिद्ध बचाने के लिए बनाया जा रहा ‘वल्चर कंजर्वेशन
ब्रीडिंग सेन्टर’ खुद को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। वन विभाग 38 लाख
रु. फूंकने के बाद भी तय नहीं कर पाया कि सेंटर के संचालन के लिए हर साल
लगने वाले २६ लाख रु. कौन देगा? डीबी स्टार ने पड़ताल की तो सामने आया कि
जिम्मेदारों ने विदेशी धन के भरोसे गिद्ध बचाव योजना तो बना ली, लेकिन
क्रियान्वयन नहीं कर पाए।
सेंटर पर 4 छोटे व 1 बड़े पक्षी घर सहित स्टाफ के लिए आवास भी बनाए जा चुके
हैं। ये मार्च २क्१क् से बनकर तैयार हैं, लेकिन सुनसान पड़े हैं। ऐसे में
सवाल यह है कि मप्र शासन जब २क्क्७ में तय की गई राशि २६ लाख रु. ही नहीं
दे पा रहा है तो समय के साथ बढ़ती राशि कैसे देगा? ये जवाब किसी के पास
नहीं है।
आड़े आ गई आर्थिक मंदी
सेंटर के संचालन के लिए बाम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी को जिम्मा सौंपा
गया। बीएनएचएस इसके लिए ब्रिटेन की संस्था से आर्थिक मदद लेती है। इस बात
में पेंच तब फंसा जब बीएनएचएस क ो वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण यहां से
आर्थिक मदद मिलना कम हो गई। अब इसके द्वारा पिंजौर सहित देश के तीन
केन्द्रों का संचालन तो किया जा रहा है पर वन विहार के लिए आर्थिक मदद से
साफ इंकार कर दिया गया है।
अब बन गया गले की फांस..
मध्यप्रदेश शासन ने इसके लिए ५ एकड़ जमीन दे दी है, लेकिन हर साल जो २६
लाख खर्च होना है, उसकी जिम्मेदारी शासन भी नहीं लेना चाहता है। ऐसे में यह
सेंटर वन विभाग के लिए गले की फांस बन गया है। पहले यह केंद्र केरवा ईको
टूरिज्म सेंटर के पीछे बनना था, जिसके कारण यह एक साल लेट हो गया और
जैसे-तैसे जमीन मिली तो अब बजट राशि को लेकर माथापच्ची चल रही है।