रोजगार उपलब्ध कराने वाली महात्मा गांधी नरेगा विकास में भले अव्वल न बने,
लेकिन शिकायतों में जरूर ‘सरताज’ बन गई है। योजना शिकायतों के ‘भंवर’ से
बाहर नहीं निकल पा रही है। राजस्थान में रोजाना औसतन 50 शिकायतें नरेगा से
जुड़ी हुई प्राप्त हो रही हैं। शिकायतों की बाढ़ के चलते विकास की अधिकारी
जांच के ‘भंवर’ में फंस गए हैं। शिकायतों का समय पर समाधान करना कठिन हो
रहा है। राज्य में वित्त वर्ष 2010-11 के प्रथम छहमाही (30 सितम्बर तक) में
नरेगा में 8 हजार 432 शिकायतें मिल चुकी है। इनमें से समाधान 6 हजार 952
का ही हो पाया। सबसे ज्यादा 1588 शिकायतें बाड़मेर जिले में प्राप्त हुई।
केन्द्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायतीराज मंत्री सीपी जोशी के संसदीय
क्षेत्र भीलवाड़ा में भी 1078 शिकायतें मिली।
घटिया निर्माण और अनियमितताओं को शिकायतों का आधार माना जाए तो राज्य
में सबसे बेहतर काम जैसलमेर और राजसमन्द में हो रहा है। जैसलमेर में 13 तो
राजसमन्द में 14 शिकायतें प्राप्त हुई। जैसलमेर में सभी शिकायतों का समाधान
भी हो चुका है। बारां में 38 में से 37 तो कोटा में 41 में से 40 शिकायतें
निपट चुकी हैं।
नरेगा में अधिकारियों को रूटीन ज्ञापनों के अलावा जिला परिषद,
कलक्ट्रेट, एसडीएम एवं पंचायत समिति कार्यालयों में लगे शिकायत बॉक्स,
नरेगा हेल्पलाइन, नरेगा संवाद आदि माध्यमों से भी शिकायतें प्राप्त हो रही
हैं।
वित्त वर्ष की प्रथम छहमाही में नरेगा शिकायतों के पीछे राजनीतिक
द्वेषता भी एक बड़ा कारण बनी। फरवरी में पंचायतीराज चुनाव के बाद नए
प्रतिनिधि पुरानों के ‘कारनामे’ उजागर करने के लिए शिकायतें करने लगे।
हारने वाले नयों के काम में मीन-मेखा निकाल शिकायतें करने लगे।