नई दिल्ली। प्रस्तावित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के तहत देश के
कम से कम 75 प्रतिशत आबादी को इसके दायरे में लेने के लिए राष्ट्रीय
सलाहकार परिषद [एनएसी] की सिफारिशों को लागू करने हेतु संप्रग सरकार को हर
साल करीब 6.2 करोड़ टन खाद्यान्न की आवश्यकता होगी।
खाद्यान्नों की आवश्यकता सरकार के द्वारा पिछले वर्ष की गई 5.4 करोड़ टन
की खरीद से कहीं अधिक है। हाल में संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई
वाली एनएसी की बैठक में प्रस्तावित कानून के बारे में सिफारिशों को अंतिम
रूप दिया गया था तथा मोटे तौर पर दो श्रेणी प्राथमिक और सामान्य बनाई गई।
इन्हें रियायती [सब्सिडीप्राप्त] खाद्यान्न पाने का कानूनी अधिकार देने की
सिफारिश की गई। इसके तहत ग्रामीण आबादी के 90 फीसदी और शहरी आबादी के 50
प्रतिशत लोगों को इसके दायरे में लिया जाना है।
सूत्रों के अनुसार एनएसी के प्रस्तावों के अनुरूप प्राथमिक श्रेणी के
तहत करीब 9.68 करोड़ परिवार को इसके दायरे में लिया जाएगा और सामान्य श्रेणी
के तहत 8.92 करोड़ लोगों को दायरे में लिया जाएगा। जिसके बाद कुल लाभ पाने
वालों की संख्या 18.6 करोड़ परिवार होगी।
मौजूदा समय में सरकार सस्ते खाद्यान्न 18.04 करोड़ परिवारों को उपलब्ध
कराती है जिसमें गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वाले [बीपीएल] 6.52 करोड़
परिवार हैं जबकि 11.5 करोड़ गरीबी रेखा से ऊपर [एपीएल] के परिवार है। पिछले
वित्तवर्ष में पीडीएस के तहत उठान 4.24 करोड़ टन का था।
सूत्रों ने बताया कि प्राथमिक और सामान्य श्रेणी के तहत खाद्यान्नों की
जरूरत क्रमश: चार करोड़ टन और 2.1 करोड़ टन प्रतिवर्ष होगी। यह आकलन
प्राथमिक श्रेणी में आने वाले परिवारों को एक रुपये प्रति किलोग्राम की दर
से मोटे अनाज और दो रुपये प्रति किलोग्राम की दर से गेहूं तथा तीन रुपये
प्रति किलोग्राम की दर से चावल एवं कुल 35 किलोग्राम खाद्यान्न उपलब्ध
कराने के प्रस्ताव के आधार पर व्यक्त किया गया है।
सामान्य श्रेणी के लिए एनएसी ने 20 किलोग्राम खाद्यान्न की आपूर्ति
करने का सुझाव दिया है जिसकी कीमत मौजूदा समर्थन मूल्य के 50 प्रतिशत से
अधिक नहीं हो। इसके तहत कीमत गेहूं के लिए 5.50 रुपये और चावल के लिए 7.70
रुपये प्रति किलोग्राम बैठती है। एनएसी ने अनुमान लगाया है कि अगर उसकी
सिफारिशों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक के रूप में लागू किया जाता है
तो सरकार का खाद्य सब्सिडी का खर्च 23,231 करोड़ रुपये बढ़ जाएगा।
मौजूदा समय में सरकार खाद्य सब्सिडी के बतौर हर साल 56,700 करोड़ रुपये का खर्च करती है।