विदेशी निवेश प्रस्ताव पोस्को स्टील प्लांट को लेकर रहस्य अभी बरकरार है।
उड़ीसा स्थित पोस्को परियोजना पर गठित स्वतंत्र जांच समिति ने सरकार से
कंपनी को दी गई पर्यावरण क्लीयरेंस वापस लेने की सिफारिश की है। हालांकि,
यह मीना गुप्ता की अगुवाई वाली समिति के तीन सदस्यों की ही राय है। जबकि
खुद गुप्ता दक्षिण कोरियाई कंपनी को दी गई अनापत्ति जारी रखने के हक में
है। इसलिए समिति ने अलग-अलग रिपोर्ट सौंपी है। इस विभाजित रिपोर्ट पर अब वन
अधिकार समिति (एफएसी) 25 अक्टूबर को होने वाली बैठक में विचार करेगी। अगर
गुप्ता समिति के सदस्यों की बहुमत राय स्वीकार की गई तो 51 हजार करोड़
रुपये के भारी-भरकम निवेश वाली यह परियोजना भी बंद हो सकती है। पर्यावरण
मंत्रालय ने वन कानूनों के उल्लंघन को लेकर तीन महीने पहले पोस्को के
परियोजना स्थल पर काम रोकने का आदेश दिया था। इसके साथ ही पूर्व पर्यावरण
सचिव मीना गुप्ता की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र जांच समिति गठित कर दी थी।
देवेंद्र पांडे, उर्मिला पिंगला और वी. सुरेश को इस समिति का सदस्य बनाया
गया।
सोमवार को समिति के दोनों धड़ों से अलग-अलग रिपोर्ट प्राप्त करने के
बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि अभी उन्होंने इस मामले
में अपनी कोई राय नहीं बनाई है। एफएसी की बैठक के बाद ही इस बारे में कोई
फैसला संभव है। इस दौरान मंत्रालय का पर्यावरण प्रभाव विभाग और तटीय नियमन
विभाग भी इनका आकलन करेगा। तमाम मतभेदों के बावजूद समिति के दोनों धड़े इस
बात पर सहमत हैं कि उड़ीसा के जगतसिंहपुर जिले में पोस्को के प्रस्तावित
स्टील प्लांट को लेकर वन अधिकार कानून की अनदेखी हुई है। साथ ही रिपोर्ट
में परियोजना के जल स्रोत को लेकर भी गहरी चिंता जताई गई है। हालांकि
परियोजना का भविष्य तय करने के लिए गठित गुप्ता समिति की रिपोर्ट के आधार
पर सरकार के लिए इस मामले पर सीधे फैसला लेना आसान नहीं होगा। समिति के
सदस्यों द्वारा पेश दोनों रिपोर्ट कई मुद्दों पर एक दूसरे को काटती हैं।
गुप्ता की राय में पोस्को परियोजना के लिए निर्धारित इलाका अधिसूचित नहीं
है। ऐसे में यहां न तो जनजातीय आबादी है और न ही वन उत्पादों पर निर्भर
लोगों की कोई बड़ी संख्या है। इसके विपरीत समिति के अन्य सदस्यों ने इलाके
में 21 अनुसूचित जनजाति परिवारों की मौजूदगी की बात कही है। तीनों सदस्यों
ने पोस्को इंडिया लिमिटेड को जानकारियां छुपाने का भी दोषी बताते हुए कंपनी
को 15 मई, 2007 को दी गई पर्यावरण क्लीयरेंस वापस लेने की सिफारिश की है।
पर्यावरण मंत्रालय बीते दिनों उड़ीसा के ही नियामगिरी इलाके में स्थित
वेदांत कंपनी की बॉक्साइट परियोजना को खारिज कर चुका है। हालांकि पोस्को
परियोजना पर सीधे कैंची चलाना भी सरकार के लिए कठिन होगा। पर्यावरण मंत्री
मानते हैं कि पोस्को और वेदांत का मामला काफी अलग है। पोस्को परियोजना न
केवल अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश है, बल्कि भारत की लुक
ईस्ट नीति का भी प्रतिनिधि है। इस प्रोजेक्ट के लिए भारत और दक्षिण कोरिया
के बीचवर्ष 2005 में करारनामे पर दस्तखत हुए थे। प्रस्तावित योजना के तहत
पोस्को को स्टील प्लांट के साथ ही एक पोर्ट और कैप्टिव पावर प्लांट भी बनना
है।