बर्बाद अनाज की सही जानकारी न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार को एक बार फिर फटकारा।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा कि अनाज की बर्बादी के लिए जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई।
जस्टिस
दलवीर भंडारी और दीपक वर्मा की बेंच ने कहा कि भारी मात्रा में अनाज की
बर्बादी एक गंभीर बात है। एक तरफ लोगों के पास दो वक्त की रोटी नसीब नहीं
है और दूसरी तरफ अनाज सड़ रहा है। बेंच ने सरकार को आगाह किया कि खरीफ की
फसल से प्राप्त खाद्यान्न गोदामों में सुरक्षित रखने का पर्याप्त प्रबंध
किया जाए।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) मोहन पारासरन के इस कथन
से अदालत खासी नाराज थी कि भारतीय खाद्य निगम(एफसीआई) के गोदामों में सिर्फ
सात हजार टन अनाज ही सड़ा है। 67 हजार टन से अधिक अनाज हरियाणा और पंजाब
सरकार के गोदामों में खराब हुआ है। बेंच ने कहा कि सात हजार टन अनाज कम
नहीं होता।
अदालत ने कई बार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए अनाज
की मात्रा बढ़ाने की बात कही है लेकिन सरकार इस पर अभी तक साफ जवाब नहीं दे
पाई है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर पीयूसीएल
द्वारा दायर जनहित याचिका पर अदालत सुनवाई कर रही है।
इसे पहले
अदालत ने गरीबों को मुफ्त अनाज बांटने का आदेश दिया था। लेकिन सरकार ने इस
पर अमल नहीं किया। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश
पर कहा था कि अदालतों को नीतिगत विषयों पर दखल नहीं देना चाहिए।
सुप्रीम
कोर्ट ने सरकार से पूछा कि गोदामों और खुले आसमान की नीचे पड़े अनाज के
सड़ने पर किसकी जिम्मेदारी तय की गई और दोषी अफसरों के खिलाफ क्या कार्रवाई
की गई। सड़े अनाज को वितरित करने पर बेंच ने कहा कि अगर खाद्यान्न खाने
योग्य नहीं है तो उसे न बांटा जाए।
सड़ा अनाज जानवरों को भी नहीं
देना चाहिए। बेंच ने दोहराया कि बीपीएल और अंत्योदय योजना के तहत आने वाले
परिवारों को अनाज की मात्रा बढ़ाने में क्या परेशानी है। इन लोगों को पेट
भरने लायक अनाज नहीं मिल रहा है। सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी।