इस्पात
कंपनी पोस्को की उड़ीसा में लगने वाली 54,000 करोड़ रुपये की परियोजना पर
छाए अनिश्चितता के बादल फिलहाल छंटते नजर नहीं आ रहे हैं। इस परियोजना की
जांच के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित की गई समिति भी अपने
फैसले पर एकमत नहीं है। इसके 4 सदस्यों में 3 ने परियोजना स्थगित करने का
सुझाव दिया है, जबकि 1 सदस्य इसे जारी रखने के पक्ष में है।
पूर्व पयार्वरण मंत्रालय सचिव मीना गुप्ता की अध्यक्षता में गठित समिति के
बाकी सदस्य हैं- उर्मिला पिंगले, देवेंद्र पांडेय और वी सुरेश। समिति का
गठन उड़ीसा में एकीकृत इस्पात संयंत्र और निजी बंदरगाह लगाने के लिए पोस्को
द्वारा दिए गए प्रस्ताव का अध्ययन कर उस पर मंत्रालय को सुझाव देने के लिए
किया गया था।
हालांकि 28 जुलाई को गठित की गई इस समिति ने दो अलग रिपोर्ट जमा की हैं।
दोनों ही रिपोर्ट में उड़ीसा सरकार को संयंत्र के लिए वन अधिकार अधिनियम
(एफआरए)में बदलाव नहीं करने का सुझाव दिया गया है। सभी सदस्य इस पर राजी थे
कि एफआरए के तहत वन में रहने वालों की भी इस मामले में राय ली जानी चाहिए।
गुप्ता ने बताया कि अनुमति पर सदस्यों की सहमति नहीं बन पाई है। उन्होंने
बताया कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई अनुमति पढ़ते समय कई ऐसी
बातें सामने आई, जो चिंता का सबब बन सकती हैं। इनमें संयंत्र को की जाने
वाली जल आपूर्ति और इस कारण जल स्रोत में आने वाली गिरावट, औद्योगिक परिसर
का प्रदूषित क्षेत्र में तब्दील होना, पारादीप के इतने करीब बंदरगाह होने
से वहां की वनस्पति एवं प्राणियों पर पडऩे वाला प्रभाव शामिल हैं। समिति के
सदस्यों का मानना है कि अनुमति देने से पहले इन सभी बातों पर ध्यान दिया
जाना चाहिए था।
नाम नहीं छापने की शर्त पर पोस्को के एक अधिकारी ने बताया, ‘हमारे पास
टिप्पणी करने के लिए कुछ नहीं है। यह वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का मामला
है। हम 25 अक्टूबर को वन सलाहकार समिति के साथ होने वाली बैठक का इंतजार कर
रहे हैं।
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बताया, ‘गुप्ता रिपोर्ट का सुझाव है कि
अतिरिक्त शर्तों एवं नियमों के साथ मौजूदा पर्यावरण एवं सीआरजेड अनुमतियां
बरकरार रहें। बाकी सदस्यों का मत है कि इन सभी अनुमतियों को रद्द किया
जाए। यह नजरिये की बात है। बाकी सदस्यों का कहना है कि मंत्रालय ने अनुमति
देते समय कई प्रमुख मुद्दों को नजरअंदाज किया है।
कंपनी पोस्को की उड़ीसा में लगने वाली 54,000 करोड़ रुपये की परियोजना पर
छाए अनिश्चितता के बादल फिलहाल छंटते नजर नहीं आ रहे हैं। इस परियोजना की
जांच के लिए वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा गठित की गई समिति भी अपने
फैसले पर एकमत नहीं है। इसके 4 सदस्यों में 3 ने परियोजना स्थगित करने का
सुझाव दिया है, जबकि 1 सदस्य इसे जारी रखने के पक्ष में है।
पूर्व पयार्वरण मंत्रालय सचिव मीना गुप्ता की अध्यक्षता में गठित समिति के
बाकी सदस्य हैं- उर्मिला पिंगले, देवेंद्र पांडेय और वी सुरेश। समिति का
गठन उड़ीसा में एकीकृत इस्पात संयंत्र और निजी बंदरगाह लगाने के लिए पोस्को
द्वारा दिए गए प्रस्ताव का अध्ययन कर उस पर मंत्रालय को सुझाव देने के लिए
किया गया था।
हालांकि 28 जुलाई को गठित की गई इस समिति ने दो अलग रिपोर्ट जमा की हैं।
दोनों ही रिपोर्ट में उड़ीसा सरकार को संयंत्र के लिए वन अधिकार अधिनियम
(एफआरए)में बदलाव नहीं करने का सुझाव दिया गया है। सभी सदस्य इस पर राजी थे
कि एफआरए के तहत वन में रहने वालों की भी इस मामले में राय ली जानी चाहिए।
गुप्ता ने बताया कि अनुमति पर सदस्यों की सहमति नहीं बन पाई है। उन्होंने
बताया कि वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई अनुमति पढ़ते समय कई ऐसी
बातें सामने आई, जो चिंता का सबब बन सकती हैं। इनमें संयंत्र को की जाने
वाली जल आपूर्ति और इस कारण जल स्रोत में आने वाली गिरावट, औद्योगिक परिसर
का प्रदूषित क्षेत्र में तब्दील होना, पारादीप के इतने करीब बंदरगाह होने
से वहां की वनस्पति एवं प्राणियों पर पडऩे वाला प्रभाव शामिल हैं। समिति के
सदस्यों का मानना है कि अनुमति देने से पहले इन सभी बातों पर ध्यान दिया
जाना चाहिए था।
नाम नहीं छापने की शर्त पर पोस्को के एक अधिकारी ने बताया, ‘हमारे पास
टिप्पणी करने के लिए कुछ नहीं है। यह वन एवं पर्यावरण मंत्रालय का मामला
है। हम 25 अक्टूबर को वन सलाहकार समिति के साथ होने वाली बैठक का इंतजार कर
रहे हैं।
पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने बताया, ‘गुप्ता रिपोर्ट का सुझाव है कि
अतिरिक्त शर्तों एवं नियमों के साथ मौजूदा पर्यावरण एवं सीआरजेड अनुमतियां
बरकरार रहें। बाकी सदस्यों का मत है कि इन सभी अनुमतियों को रद्द किया
जाए। यह नजरिये की बात है। बाकी सदस्यों का कहना है कि मंत्रालय ने अनुमति
देते समय कई प्रमुख मुद्दों को नजरअंदाज किया है।