पोस्को पर फैसले में अब ज्यादा देर नहीं

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। जी-20 के सम्मेलन में शिरकत के लिए नवंबर
में दक्षिण कोरिया रवाना होने से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश में
पोस्को के निवेश पर भी अंतिम फैसला लेना होगा।

जी-20 विकसित व भारत, चीन जैसे प्रमुख विकासशील देशों का संगठन है।
उड़ीसा में यह दक्षिण कोरियाई कंपनी 50 हजार करोड़ से अधिक निवेश से विशाल
स्टील प्लांट लगा रही है। इस कंपनी के निवेश का भविष्य तय करने के लिए गठित
मीना गुप्ता समिति सोमवार को अपनी रिपोर्ट वन व पर्यावरण मंत्री जयराम
रमेश को सौंप देगी।

हालांकि सूत्रों के मुताबिक पूर्व पर्यावरण सचिव मीना गुप्ता की अगुवाई
वाली चार सदस्यीय यह समिति किसी सर्वसम्मत राय पर नहीं पहुंच सकी है।
समिति ने 27 और 28 अगस्त को पोस्को के जगतसिंहपुरा स्थित परियोजना क्षेत्र
का दौरा किया था। इस दौरान उसने कंपनी के प्रतिनिधियों और परियोजना का
विरोध कर रहे वन अधिकार कार्यकर्ताओं से भी बात की थी। परियोजना समर्थकों
का तर्क था कि इलाके में न तो कोई जनजातीय लोग और न ही ग्रामीण आबादी ऐसी
है, जो जीविका के लिए जंगल पर निर्भर है। लिहाजा वन अधिकार कानून के
प्रावधानों को लागू करने का कोई कारण नहीं है। वहीं पोस्को प्लांट का विरोध
कर रहे कार्यकर्ताओं ने स्थानीय लोगों के वन अधिकार संबंधी तर्क और प्रमाण
पेश किए थे। समिति में गुप्ता के अलावा आदिवासी मामलों की जानकार उर्मिला
पिंगले, पूर्व वन सेवा अधिकारी देवेंद्र पांडे तथा मद्रास हाईकोर्ट में
वकील वी. सुरेश भी शामिल थे। सूत्र बताते हैं कि इस मामले पर समिति की बंटी
हुई राय की जानकारी सदस्य मंत्रालय तक भी पहुंचा चुके हैं।

बहरहाल, ऐसे में देश में अब तक के इस सबसे बड़े प्रत्यक्ष विदेशी निवेश
पर सरकार को फैसला उच्चतम स्तर पर लेना होगा। नवंबर के मध्य में जी-20 शिखर
सम्मेलन के लिए सियोल रवानगी से पहले प्रधानमंत्री जहां एक ओर स्वाभाविक
तौर पर कोई निवेश विरोधी माहौल का संदेश नहीं देना चाहेंगे। वहीं बीते
दिनों उड़ीसा में अनिल अग्रवाल के वेदांत समूह की नियामगिरि बॉक्साइट
परियोजना पर रोक लगाने लेकर हुई राजनीति का भी उन्हें ध्यान रखना होगा।

पूर्व नौकरशाह एनसी. सक्सेना की अध्यक्षता में गठित समिति की रिपोर्ट
के बाद मंत्रालय ने वेदांत की इस अल्युमिनियम रिफाइनरी के लिए दी गई
पर्यावरण मंजूरी को वापस ले लिया था। वेदांत की परियोजना ठप होने के बाद
राहुल गांधी ने नियामगिरि इलाके का दौरा कर खुद को आदिवासियों का सिपाही
करार दिया था। उनके इस बयान का संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी समर्थन
किया था। हालांकि प्रधानमंत्री पर्यावरण की फिक्र के साथ विकास की जरूरतों
के बीच संतुलन साधने पर जोर देते हैं।

मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि समिति की रिपोर्ट पर 25 अक्टूबर को
होने वाली वन सलाहकार समिति चर्चा करेगी। पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने
समिति का गठन 28 जुलाई को यह पता लगाने के लिए किया गया था कि उड़ीसा के
जगतसिंहपुरा इलाके में चल रहे परियोजना कार्य में वन अधिकार कानून का
उल्लंघन तो नहीं हो रहा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *