जिस व्यक्ति, संस्था
या विभाग ने तैयारियों में थोड़ा सा भी
योगदान किया था कॉमनवेल्थ खेलों के उद्धाटन समारोह लंबे भाषणों
में सबको याद
किया गया। क्या किसी को इन भाषणोंमेंउन हजारों मजदूरों के लिए भी आभार
का एक शब्द सुनाई दिया जिनकी मेहनत से यह विश्वस्तरीय आयोजन संभव हो सका।
शायद यह अनजाने में होने वाली भूल हो या फिर यह भी हो सकता है कि ऐसा करना
जरुरी ना लगा हो। वैसे भी, अपनी
मेहनत से कॉमनवेल्थ खेलों को संभव
बनाने वाले मजदूर थे कहां भाषण सुनने के लिए। खेलों की शुरुआत
के हफ्ते भर पहले
ही उन्हें दिल्ली से बाहर कर दिया गया था।
आंकड़े कहते हैं कि कॉमनवेल्थ खेल, दिल्ली मेट्रो और दिल्ली में बने नए एयरपोर्ट
टर्मिनल के निर्माण कार्य में लगे 128
मजदूरों ने काम के दौरान अपनी जान गंवायी। फिर कुल 128 मजदूर ऐसे भी हैं जो इन कामों के दौरान
घायल हुए, मगर उनके बारे में शायद ही किसी को कुछ
पता है। हाल के दिनों में
ढेरों आरटीआई इसके बारे में दायर किए गए लेकिन सरकार ऐसे किसी
भी ब्यौरे को बताने
से कतराती रही(देखें नीचे दी गई लिंक)। मजदूरों के लिए साफ पेयजल या फिर
शोचालय की सुविधा मुहैया कराने की बात आई तो तैयारियों की जिम्मेदारी संभाल
रहे अधिकारियों ने एक नायाब तरीका अपनाया( सीडब्ल्यूजी- सीडब्ल्यूसी की
रिपोर्ट नीचे संलग्न है। रिपोर्ट के अनुसार कुछ जगहों पर 450 मजदूरों के लिए एक शौचालय की व्यवस्था थी और इस एक
शौचालय को भी कभी हफ्ते में कभी
महीने में एक बार साफ किया जाता था)।
मजदूरों की मृत्यु के बारे में ऊपर जो आंकड़ा दर्ज किया है उसे
19 नागरिक संगठनों
की एक जमात ने जारी किया है।इन संगठनों से कई स्रोतों से ये जानकारी जुटायी है। अगर हम जल और
मल-जनित बीमारियों मसलन डेंगू, मलेरिया, हैजा और अतिसार से होने वाली मौतों को
भी जोड़ लें तो निस्संदेह मजदूरों की
मौत के वास्तविक आंकड़े इससे कहीं आगे जायेंगे। मौत की चपेट
में आये अधिकतर
मजदूर आप्रवासी थे और इनको कानूनी तौर पर प्रतिबंधित ठेकेदारों ने निर्माण-कार्य
में जोता था।
कॉमनवेल्थ खेलों से देश की राजधानी के गरीब और आप्रवासी
मजदूरों को क्या गरिमा
हासिल होगी। झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले इन लोगों को पुलिसिया बर्बरता
के साथ राजधानी से बाहर खदेड़ा गया (कृपया विस्तृत ब्यौरे के लिए नीचे
दी गई लिंक और वीडियो रिपोर्ट देखें)। झोपड़पट्टी वासियों की आपबीती के
अनुसार, झुग्गियों
पर सीधे-सीधे बुलडोजर चला दिए गए। कइयों का
बर्तन-भांडे कपड़े-लत्ते म्युनिस्पैल्टी के छुटभैये या फिर
पुलिसिए लेकर चल-चंपत
हुए। मजदूरों से कहा गया कि तुम लोगों के पास मतदाता पहचान पत्र नहीं
है इसलिए राजधानी से बाहर निकलने के सिवा और कोई चारा नहीं। हरहाल जिनके
पास मतदाता पहचान पत्र या फिर ऐसा ही कोई और पहचान पत्र था उन्हें भी नहीं
बख्शा गया।
जिन मजदूरों ने दिन रात की हाड़तोड़ मेहनत की उन्हें ही
राष्ट्र के सम्मान की
रक्षा में राजधानी से बाहर होना पडा। इन मजदूरों ने बड़े जोखिम भरे हालात
में काम किया था लेकिन उनके बुनियादी नागरिक और लोकतांत्रिक अधिकारों पर
बेखौफ चोट की गई। इससे भी हौलनाक बात यह कि इन मजदूरों की मौत या फिर चोट
से देश के राजनीतिक, नौकरशाही
या फिर मुख्यधारा की मीडिया के हलकों में
कोई सिसकी तक ना उभरी।
style="font-size: 12pt; font-family: Mangal">हद यह कि दिल्ली हाईकोर्ट का हस्तक्षेप भी इन्हें इंसाफ दिलाने
में नाकामयाब
रहा। पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइटस्(पीयूडीआर) की तरफ से दायर
एक जनहित याचिका पर कार्रवाई करते हुए दिल्ली हाइकोर्ट ने इस आरोप की जांच
के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की कि निर्माण-स्थलों पर हालात बड़े जोखिम
भरे हैं। समिति ने आरोप को ठीक पाया। समिति ने कहा कि मजदूरों को न्यूनतम
मजदूरी तक नहीं मिलती और उनसे तयशुदा वक्त से कहीं ज्यादा देर तक काम
लिया जाता है, वह
भी बतौर बेगार।
समिति ने पाया कि( इस समिति में अरूंधति घोष(पूर्व यूएन
प्रतिनिधि), एल
एन मिश्र(यूएनसीएचआर)
सहित दिल्ली के श्रम आयुक्त और श्रम सचिव शामिल थे) कि :
• मजदूरों का शोषण हो रहा है। उन्हें
ठेकेदार लेकर आये हैं और ये ठेकेदार श्रम कानूनों से अनजान हैं।
• मजदूर बिना सेफ्टी गियर के काम करते
रहे। निर्माण स्थल पर हुई दुर्घटना की कई खबरें दबा दी गईं।
• मस्टर रोल का सत्यापन नहीं हो सका।
आप्रवासी मजदूरों के साथ बदसलूकी की घटनाएं आम थीं।
ऐसी एक रिपोर्ट और है। इस रिपोर्ट को कई संगठनों के एक जमात-
कॉमनवेल्थ गेम्स-सिटीजन्स्
फॉर वर्कर्स,वीमेन
एंड चिल्ड्रेन(सीडब्ल्यूजी-
सीडब्ल्यूसी) ने तैयार किया है। इस रिपोर्ट में उल्लेख है कि
किस तरह निर्माण
कार्यों में बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स् एक्ट का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन किया गया। इस
रिपोर्ट के निष्कर्ष पीयूडीआर और दिल्ली
हाई कोर्ट द्वारा बैठायी गई समिति के निष्कर्षों से मेल खाते
हैं।
सेफ्टी एंड सोशल सेक्युरिटी ऑव
कंस्ट्रक्शन वर्कर्स् अंगेज्ड इन मेजर
प्रोजेक्टस् इन दिल्ली शीर्षक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि
कॉमनवेल्थ खेलों
से जुड़े निर्माण कार्य में लगे अधिकतर मजदूर आप्रवासी, दिहाड़ी पर खटने वाले और अकुशल श्रेणी के थे। इनसे
तयशुदा सीमा से कई घंटे ज्यादा काम
लिया जाता रहा जबकि मजदूरी दी गई निर्धारित न्यूनतम से भी कम।
कई मामलों में
देखा गया कि मजदूरी का भुगतान बड़ी देर से हुआ और कभी कभी तो मजदूरी ही नहीं
दी गई।। इस अध्ययन में शामिल 90 फीसदी
मजदूरों ने कहा कि उनसे दिन
में 9 घंटे
से कहीं ज्यादा काम लिया गया और सिर्फ 74
फीसदी ने माना कि
रजिस्टर पर उनसे करवाये गए ओवरटाइम का ब्यौरा दर्ज किया गया
है। अधिकतर निर्माणस्थलों
पर मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिली। दिल्ली में अकुशल श्रमिक का न्यूनतम मेहनताना 151 रुपये है लेकिन शायद ही किसी अकुशल श्रमिक
को 110 रुपये
से ज्यादा का भुगतान किया गया हो। एक तिहाई से ज्यादा मजदूरों ने कहा कि उन्हें मजदूरी देर से
मिली।
सीडब्ल्यूजी- सीडब्ल्यूसी की रिपोर्ट में मजदूरों की दयनीय
जीवन-दशा की और संकेत
करते हुए कहा गया है-ज्यादातर निर्माण स्थलों पर औसतन 114 मजदूरों के लिए सिर्फ एक शौचालय है। बड़े निर्माण
स्थलों मसलन एयरपोर्ट पर तो हालत और
भी संगीन है। वहां औसतन 450
मजदूरों पर केवल एक शौचालय है। दुर्गति की हद यह
कि यह शोचालय भी कभी हफ्ते में दो कभी महीने में एक बार सफाई का मुंह देख
पाता है। अध्ययन में शामिल केवल 86 फीसदी
मजदूरों ने कहा कि उन्हें साफ
पेयजल हासिलहै। सिर्फ style="font-size: 12pt; font-family: 'Times New Roman','serif'">5
फीसदी मजदूरों ने माना कि घनघोर गर्मी में उन्हें कूलर
की सुविधा मुहैया करायी गई। कैंटीन की सुविधा फराहम कराना एक वैधानिक दायित्व
है लेकिन सिर्फ 79 फीसदी
मजदूरों को ही यह सुविधा हासिल थी। शोध
में शामिल 15 निर्माण
स्थलों में सिर्फ 7 में
क्रेच की सुविधा थी।
इस रिपोर्ट के अनुसार-:
• अधिकतर निर्माण स्थलों पर मजदूरों को
सुरक्षा के उपकरण मसलन हैलमेट, बूट
आदि मुहैया कराये गए लेकिन ये उपकरण घटिया किस्म के थे। इनसे सुरक्षा तो
क्या मिलनी थी, टूट-फूट
की स्थिति में इन उपकरणों को बदलने में देरी हुई। कहीं-कहीं इसके पैसे भी मजदूर के
मेहनताने से काटे गए।
• बिल्डिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स्
एक्ट-1996 में
मजदूरों की सुरक्षा
के बारे में बड़े महीन ब्यौरे दर्ज किए गए हैं लेकिन अधिकतर मामलों में
ठेकेदारों सुपरवाइजरों और मजदूरों ने इन सुरक्षा मानकों को बड़े हल्के में
लिया।
• तकरीबन 70%
दुर्घटनाएं ऊँचाई से गिरने,
मशीन या फिर सरिया या अन्य चीजों से टकराने के कारण हुईं। ऐसे
मामलों में मुआवजा देना एक वैधानिक
दायित्व है लेकिन ऐसा बड़े कम मामलों में देखने में आया। ज्यादातर
मामलों में
ठेकेदार ने उपचार की न्यूनतम रकम चुकाकर छुट्टी पा ली।
• घायल होने की सूरत में अगर कोई मजदूर
काम पर नहीं आ सका तो इस एवज में उसे कोई पेड लीव सैंक्शन नहीं की गई।
पीयूडीआर की रिपोर्ट में भी इशारा किया गया था कि कॉमनवेल्थ
गेम्स विलेज के style="font-size: 12pt; font-family: Mangal">निर्माण
स्थल पर कई श्रम कानूनों मसलन द बांडेड लेबर सिस्टम एबॉंलिशन एक्ट-1976,
मिनिमम वेज एक्ट-1948,
कांट्रैक्ट लेबर(प्राहिबिशन एंड रेग्युलेशन) एक्ट 1970, द इन्टर स्टेट
माइग्रेंट वर्कमैन(रेग्युलेशन ऑव
एम्पलॉयमेंट एंड कंडीशन ऑव सर्विसेज) एक्ट-1979, तथा इक्वल रिम्युनिरेशन एक्ट
1946 में
वर्णित विधानों का उल्लंघन किया गय़ा।
सीडब्ल्यूजी- सीडब्ल्यूसी के अध्ययन में एक जगह एक खास वाकये
का जिक्र है। रिपोर्ट
के अनुसार बिहार और झारखंड से आये कुछ मजदूर सेंटूर होटल के पास चल रहे
निर्माण स्थल के पास एक पेड़ रहने के
लिए बाध्य थे। ये लोग ट्रक से आये सामान उतारने के काम में लगे थे।
इन्हें चूंकि पुलिस और अधिकारियों ने
किसी तरह का आश्रयस्थल बनाने नहीं दिया इसलिए धूप, शीत,
बारिश सारा कुछ वे
पेड़ पर रहकर झेलने को बाध्य थे। यहां कीड़ों ने अपनी तरफ से
आफत मचा रखी थी
और कभी कभी सांप भी निकल आते थे। बहरहाल खेलगांव में निकले सांपों की खबरें
तो बनी लेकिन यहीं निकले सांपों की सुर्खियां ना बन सकीं।
रिपोर्ट के अनुसार विडंबना यह है कि ऐसी दुर्दशा और अमानवीय
परिस्थिति के बावजूद
मजदूर संतुष्ट हैं क्योंकि गांवों के विपरीत शहर में उन्हें कोई ना कोई
काम तो मिल रहा है। कुल 5 फीसदी
मजदूरों ने कहा कि वे अपने काम से खूब
संतुष्ट हैं जबकि,
43 फीसदी ने कहा कि वे सिर्फ संतुष्ट हैं। 46 फीसदी का कहना था कि जो काम है वह काम ना होने से
तो अच्छा ही है।
इंक्लूसिव मीडिया फॉर चेंज की टोली ने यह रिपोर्ट निम्नलिखित
लिंक की सामग्री
के आधार पर बनायी है। समस्या की विशेष जानकारी के लिए ये लिंक आपके लिए
उपयोगी हो सकते हैं-:
In the Name of National Pride
(2009), prepared by the People’s Union for Democratic Rights (PUDR),
http://www.pudr.org/index.php?option=com_docman&task=doc_view&gid=180&Itemid=63
http://www.pudr.org/index.php?option=com_docman&task=doc_view&gid=201&Itemid=63
http://cwg2010cwc.org/cwGames.php#top
http://cwg2010cwc.org/factSheet.php
http://cwg2010cwc.org/laborActs.php
http://radicalnotes.com/journal/2010/09/23/commonwealth-games-national-pride-and-workers-death/
The Times of India, 18 March, 2010,
http://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/Workers-at-
Commonwealth-Games-sites-an-exploited-lot-Panel/articleshow/5695682.cms
http://www.youtube.com/watch?v=peFHthxPFz8&feature=player_embedded#!
Labour’s love lost by Harsh Mander,
The Hindustan Times, 18 March, 2010, http://www.hindustantimes.com/Labour-s-love-lost/H1-Article1-520267.aspx
Workers at Commonwealth Games sites
an exploited lot: Panel by Abhinav Garg, The Times of India, 18 March, 2010, http://timesofindia.indiatimes.com/city/delhi/Workers-at-Commonwealth-Games-sites-an-exploited-lot-Panel/articleshow/5695682.cms
Nothing Common about this Wealth by
Dunu Roy, Hard News, March, 2010, http://www.hardnewsmedia.com/2010/02/3466
Panel to probe alleged violation of
rights of labourers, The Hindu, 4 February, 2010, http://www.hindu.com/2010/02/04/stories/2010020459910400.htm
NGOs voice concern over workers’
deaths at CWG sites, The Indian Express, 26 October, 2009, http://www.indianexpress.com/news/ngos-voice-concern-over-workers-deaths-at-cwg-sites/533456/
HC slams MCD for razing slums in
Games run-up by Utkarsh Anand,
The Indian Express, 28 January,
2010, http://www.indianexpress.com/news/hc-slams-mcd-for-razing-slums-in-games-runup/572302/
Labouring for the commonwealth Games
by CP Surendran, The Times of India, 18 July, 2010,http://timesofindia.indiatimes.com/india/Slave-labour-in-svelte-Delhi/articleshow/6182947.cms
Govt to HC: Will hold camps to
inform Games site workers about their rights, wages, benefits by Utkarsh Anand,
The Indian Express, 29 April, 2010, http://www.indianexpress.com/news/govt-to-hc-will-hold-camps-to-inform-games-site-workers-about-their-rights-wages-benefits/612714/
Street vendors demand a fair deal,
The Hindu, 2010, 2 June, 2010, http://www.hindu.com/2010/06/02/stories/2010060256800400.htm
Govt’s novel gameplan: Hide beggars
in covered parks, The Hindustan Times, 10 September, 2010, http://www.hindustantimes.com/Govt-s-novel-gameplan-Hide-beggars-in-covered-parks-during-CWG/H1-Article1-598320.aspx
Reward of labour: eviction by Imran Ahmed
Siddiqui, The Telegraph, 4 October, 2010, http://www.telegraphindia.com/1101004/jsp/nation/story_13015231.jsp
India bribed 72 nations to get Delhi
CWG: Report, The Times of India, 24 September, 2010, http://timesofindia.indiatimes.com/sports/events-tournaments/commonwealth-games/top-stories/India-bribed-72-nations-to-get-Delhi-CWG-Report/articleshow/6616467
.
Govt assures action in CWG
‘corruption’, The Times of India, 1 August, 2010, http://timesofindia.indiatimes.com/india/Govt-assures-action-in-CWG-corruption/articleshow/6244463.cms
CWG-related contracts, construction
work under CVC scanner, The Economic Times, 27 July, 2010, http://economictimes.indiatimes.com/news/economy/infrastructure/CWG-related-contracts-construction-work-under-CVC-scanner/articleshow/6222222.cms
CWG expenditure would have wiped out
Naxal menace, says Aiyer by Renu Mittal, Rediff.com, 20 June, 2010, http://news.rediff.com/report/2010/jun/20/cwg-expenditure-would-have-wiped-out-naxal-menage-mani-shanker-aiyer.htm
India ‘diverts funds for poor to pay
for Delhi games’ by Chris Morris, BBC, 14 May, 2010, http://news.bbc.co.uk/2/hi/south_asia/8683412.stm
Wake-up call by Jayati Ghosh,
Frontline, Volume 27, Issue 21, 9-22 October, 2010, http://www.frontlineonnet.com/stories/20101022272109000.htm
Punctured hubris by Praful Bidwai,
Frontline, Volume 27, Issue 21, 9-22 October, 2010, http://www.frontlineonnet.com/stories/20101022272109300.htm