भूख और कुपोषण पर नज़र रखने वाली एक
अंतरराष्ट्रीय संस्था की ताज़ा रिपोर्ट में भारत की स्थिति को पाकिस्तान और
श्रीलंका से भी बदतर बताया गया है.
इस सूची में भारत 67वें नंबर पर है जबकि पड़ोसी पाकिस्तान का नंबर 52वाँ है. श्रीलंका में हालात और बेहतर हैं और उसका नंबर 39वाँ है.
अमरीका स्थित इंटरनेशनल फ़ूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने
122 विकासशील देशों के आँकड़ों के आधार पर एक भूख सूचकांक जारी किया है
जिसमें कहा गया है कि भारत में कुपोषित बच्चों की संख्या 44 प्रतिशत है.
सर्वेक्षण का आधार
दिल्ली में सोमवार को एक प्रेस कॉफ़्रेंस में संस्था के
एशिया निदेशक अशोक गुलाटी ने कहा कि इस सर्वेक्षण के तीन आधार थे – बच्चों
की मृत्युदर, उनमें कुपोषण की स्थिति और कम कैलोरी पर जीवित रहने वाले
लोगों की संख्या.
दक्षिण एशिया का सत्तर प्रतिशत भू-भाग भारत में ही है इसलिए इस अध्ययन में दक्षिण एशिया की स्थिति दयनीय बताई गई है.
भारत के पड़ोसी देशों – पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका में बच्चों की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है.
इस भूख सूचकांक में चीन नौंवे नंबर पर है यानी वहाँ बाल मृत्यु दर बहुत कम है और बच्चों में कुपोषण भी अपेक्षाकृत कम है.
इस संस्था से जुड़े अख़्तर अहमद ने कहा, “भारतीय समाज में
असमानता ज़्यादा होने के कारण ये स्थिति पैदा हुई है. साथ ही भूमि का असमान
वितरण भी एक अहम कारण है. ”
भारत की स्थिति
कुछ वक़्त पहले प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने दिल्ली में
वरिष्ठ संपादकों से बातचीत में कहा था कि मुल्क की तरक़्क़ी के लिए ज़्यादा
से ज़्यादा काश्तकारों को उनकी ज़मीन से निकालकर दूसरे पेशों में लगाना
ज़रूरी है.
अशोक गुलाटी इससे सहमत हैं और चीन की मिसाल देते हुए कहते हैं कि वहाँ भी काश्तकारों को दूसरे पेशों में लगाया गया है.
वे कहते हैं कि तरक़्क़ी का इतिहास हमें बताता है कि लोगों को खेती का काम छोड़ दूसरे पेशों में लगना होगा.
पिछले दिनों सरकारी गोदामों में हज़ारों टन अनाज के सड़ने
की ख़बरें छपने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को हुक्म दिया था कि अनाज को
ग़रीबों में बाँट दिया जाए. जिसके बाद मनमोहन सिंह ने न्यायालय के हुक्म
पर टिपण्णी करते हुए कहा था कि यह हुकूमत के कामकाज में दख़लंदाज़ी है.
इस रिपोर्ट के बाद कुछ लोग मनमोहन सिंह की पॉलिसी पर सवाल खड़े करेंगें.