नई दिल्ली | केंद्र सरकार के घोषित एफआरपी के बाद
राज्यों के एसएपी तय किए जाने पर संदेह है। उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्य
एसएपी घोषित करने को लेकर मौन साधे हुए हैं। इस स्थिति में यह स्पष्ट नहीं
हो पा रहा है कि गन्ना इस बार किस मूल्य पर बिकेगा। भारी बारिश और बाढ़ के
चलते उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल को हुए नुकसान से किसान पहले ही परेशान
हैं। इसलिए वो पिछले साल के बराबर का मूल्य चाहते हैं। जबकि बाजार में
चीनी का मूल्य कम होने से उद्योग उसे दोहराने की स्थिति में नहीं है। इसे
देखते हुए इस बार फिर से चीनी उद्योग और किसान संगठनों में तकरार होने की
संभावना बढ़ गई है। केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए गन्ने का
लाभकारी व उचित मूल्य (एफआरपी) 139 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया है। यह
9.50 प्रतिशत की चीनी रिकवरी पर आधारित है। पिछले साल न्यूनतम वैधानिक
मूल्य की जगह एफआरपी निर्धारित की गई थी। इसे लेकर चीनी उद्योग बहुत
उत्साहित था। उसका मानना है कि इसके बाद राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) घोषित
करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके विपरीत गन्ना किसान संगठनों का मानना है
कि केंद्र का एफआरपी किसी भी हाल में उचित लागत व लाभकारी मूल्य नहीं हो
सकता है। किसान जागृति मंच के संयोजक सुधीर पंवार का कहना है कि उत्तर
प्रदेश सरकार में अभी तक इस मसले पर सुगबुगाहट भी नहीं है। इससे किसानों की
मुश्किलें बढ़ सकती हैं। गन्ने की फसल की बढ़ी लागत और बाढ़ से हुए नुकसान
को लेकर किसान पहले से ही सांसत में है। संकट की इस घड़ी में किसानों के
हित में राज्य सरकार आगे नहीं आई तो वे घाटे में आ जाएंगे। पिछले कई महीनों
से चीनी के दाम नीचे होने से चीनी उद्योग परेशान है। घाटा उठा रही मिलें
गन्ने का मूल्य 170-180 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक देने की स्थिति में
नहीं हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के किसान पिछले साल 250 से 260 रुपये प्रति
क्विंटल का भाव पा चुके हैं। ऐसे में उन्हें घटा भाव मंजूर नहीं होगा। इससे
दोनों पक्षों के लिए स्थितियां कठिन हो सकती हैं।
राज्यों के एसएपी तय किए जाने पर संदेह है। उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्य
एसएपी घोषित करने को लेकर मौन साधे हुए हैं। इस स्थिति में यह स्पष्ट नहीं
हो पा रहा है कि गन्ना इस बार किस मूल्य पर बिकेगा। भारी बारिश और बाढ़ के
चलते उत्तर प्रदेश में गन्ने की फसल को हुए नुकसान से किसान पहले ही परेशान
हैं। इसलिए वो पिछले साल के बराबर का मूल्य चाहते हैं। जबकि बाजार में
चीनी का मूल्य कम होने से उद्योग उसे दोहराने की स्थिति में नहीं है। इसे
देखते हुए इस बार फिर से चीनी उद्योग और किसान संगठनों में तकरार होने की
संभावना बढ़ गई है। केंद्र सरकार ने चालू पेराई सीजन के लिए गन्ने का
लाभकारी व उचित मूल्य (एफआरपी) 139 रुपये प्रति क्विंटल घोषित किया है। यह
9.50 प्रतिशत की चीनी रिकवरी पर आधारित है। पिछले साल न्यूनतम वैधानिक
मूल्य की जगह एफआरपी निर्धारित की गई थी। इसे लेकर चीनी उद्योग बहुत
उत्साहित था। उसका मानना है कि इसके बाद राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) घोषित
करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इसके विपरीत गन्ना किसान संगठनों का मानना है
कि केंद्र का एफआरपी किसी भी हाल में उचित लागत व लाभकारी मूल्य नहीं हो
सकता है। किसान जागृति मंच के संयोजक सुधीर पंवार का कहना है कि उत्तर
प्रदेश सरकार में अभी तक इस मसले पर सुगबुगाहट भी नहीं है। इससे किसानों की
मुश्किलें बढ़ सकती हैं। गन्ने की फसल की बढ़ी लागत और बाढ़ से हुए नुकसान
को लेकर किसान पहले से ही सांसत में है। संकट की इस घड़ी में किसानों के
हित में राज्य सरकार आगे नहीं आई तो वे घाटे में आ जाएंगे। पिछले कई महीनों
से चीनी के दाम नीचे होने से चीनी उद्योग परेशान है। घाटा उठा रही मिलें
गन्ने का मूल्य 170-180 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक देने की स्थिति में
नहीं हैं। जबकि उत्तर प्रदेश के किसान पिछले साल 250 से 260 रुपये प्रति
क्विंटल का भाव पा चुके हैं। ऐसे में उन्हें घटा भाव मंजूर नहीं होगा। इससे
दोनों पक्षों के लिए स्थितियां कठिन हो सकती हैं।