इस साक्षरता दर में महिला पुरूष भेदभाव गहरा है जहां पुरूष वयस्क साक्षरता दर 76.9 फीसदी है वहीं महिला वयस्क साक्षरता दर 54.5 फीसदी है. हालांकि सन 2001 की जनगणना ने सकारात्मक संकेत प्रदान किए. महिला साक्षरता दर में 14.38 फीसदी की वृद्धि हुई जबकि पुरूष साक्षरता दर में 11.13 फीसदी की वृद्धि हुई. इससे स्पष्ट होता है कि साक्षरता के क्षेत्र में महिला पुरूष का अंतर समाप्त होता जा रहा है.
प्राथमिक स्तर पर जहां सन 1950-51 में स्कूलों में दाखिला लेने वाले बच्चों की संख्या 19,200,000 थी जो 2001-02 में बढ़कर 109,800,000 हो गयी. आजादी के बाद से साक्षरता दर 1950-51 के 18.33 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 64.1 फीसदी हो गयी.
देश में साक्षरता दर बढने का संकेत मिलता है लेकिन जनसंख्या वृद्धि इतनी अधिक है कि हर दशक में निरक्षरों की कुल संख्या बढ़ती ही चली गयी. पर, 1991-2001 का दशक ऐसी अवधि रही जब पहली बार निरक्षरों की संख्या में कमी आयी. उस दशक में बिहार, नगालैंड और मणिपुर ही मात्र ऐसे राज्य थे जहां निरक्षरों की कुल संख्या में वृद्धि हुई जबकि उनके प्रतिशत में कमी आयी है.