ठेका के बाद बिना ब्याज के ही 133.12 करोड़ रुपये बतौर मोबलाइजेशन एडवांस दिया गया. जबकि सीवीसी गाइड लाइन के अनुसार मोबलाइजेशन एडवांस पर ब्याज लगाया जाना चाहिए. महालेखाकार ने लिखा है कि ऑडिट के दौरान पाया गया कि बिजली बोर्ड ने ब्याज मुक्त एडवांस के रूप में 133.12 रुपये का भुगतान किया. जबकि अग्रिम के भुगतान में ब्याज भारित होना चाहिए. एडवांस की वसूली का तरीका ओद निविदा प्रपत्र में उल्लिखित नहीं था.
ऑडिट में यह भी पाया गया कि इसके पूर्व जब बोर्ड ने टर्न के आधार पर राइट्स को दिसंबर 2003 में काम सौंपा था, तब 12 प्रतिशत की दर से ब्याज समेत मोबलाइजेशन एडवांस दिया गया था. जबकि इस मामले में जेएसइबी द्वारा ठेकेदारों को मार्च 2009 तक 12.44 करोड़ रुपये ब्याज होता था, इसके बिना ही एडवांस दिया गया. जो सीवीसी गाइड लाइन एवं बोर्ड के अपने निर्णयों का उल्लंघन था.
इस पूरे प्रकरण में आइवीआरसीएल कंपनी को 4.36 करोड़ रुपये का लाभ बिजली बोर्ड ने दिया. जिस आइवीआरसीएल से यह राशि केवल ब्याज के रूप में वसूली जानी थी, उसमें ब्याज छोड़ दिया गया. फिलहाल आइवीआरसीएल मामले की जांच निगरानी में चल रही है. शेष आठ करोड़ रुपये में ट्रांसरेल, नागार्जुना व निकोन को लाभ दिया गया.