नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। खाद्यान्न संकट से निपटने के लिए
सरकार ने मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित करने की योजना तैयार की है।
इसके तहत एक करोड़ हेक्टेयर अतिरिक्त जमीन में मोटे अनाज की खेती बढ़ाने का
लक्ष्य निर्धारित किया गया है। सिंचाई के लिए बेशक पानी कम मिले लेकिन नई
प्रौद्योगिकी और वर्णसंकर बीजों के प्रयोग से इनकी उत्पादकता बढ़ाई जाएगी।
गेहूं व चावल के मुकाबले मोटे अनाजों में फाइबर, प्रोटीन, मिनरल और
विटामिन कई गुना अधिक पाए जाते हैं। स्वास्थ्य के प्रति बढ़ी जागरूकता की
वजह से इनकी मांग में वृद्धि हुई है। फिलहाल देश में मोटे अनाज की श्रेणी
में आने वाली फसलों ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, जौ, कोदो और सावा आदि की
खेती ज्यादातर असिंचित क्षेत्रों में ही होती है। उन्नतशील प्रजाति के बीज
और प्रौद्योगिकी के अभाव में इन फसलों की उत्पादकता बहुत कम है। वर्तमान
में इन फसलों की खेती 186.43 लाख हेक्टेयर रकबा में होती है। कृषि मंत्रालय
ने इनकी खेती का रकबा बढ़ाने के लिए हर संभव मदद देने का मन बनाया है।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पिछले डेढ़ दशक में
मोटे अनाज की 80 से अधिक वर्णसंकर और एक सौ से अधिक उच्च उत्पादकता वाली
प्रजातियां विकसित की गई हैं। फिलहाल इनका प्रचलन सीमित क्षेत्रों तक ही है
लेकिन स्वास्थ्य के प्रति बढ़ती जागरूकता के चलते इनके प्रति उपभोक्ताओं
का रुझान बढ़ा है। चावल के मुकाबले ज्वार में आठ गुना अधिक फाइबर होता है
जबकि रागी में चावल के मुकाबले 40 गुना अधिक कैल्सियम, बाजरा में आठ गुना
अधिक आयरन और पांच गुना रिबोफ्लेविन व फोलिक एसिड मिलता है।