आदेश में अपनी भैरों घाटी तथा पाला-मनेरी जल-ऊर्जा परियोजनाओं पर तात्कालिक
प्रभाव से कार्य रोक देने की और गंगोत्री से उत्तरकाशी तक भागीरथी गंगा जी
के संरक्षण के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता की बात कही थी पर योजनाओं पर
(विशेषतया पाला-मनेरी परियोजना पर) विनाशकारी कार्य भयावह गति पकड़ रहे हैं
और उक्त आदेश कोरी धोखाधडी का रुप ले माँ गंगा जी की खिल्ली उड़ा रहे हैं।
केन्द्र सरकार ने अपने 19 फरवरी, 2008 के पत्र में अपनी लोहारीनाग-पाला
परियोजना पर तुरन्त प्रभाव से काम बन्द करने का आदेश दिया था। पर कार्य
स्थल पर निर्माण कार्य तो अबाध ही नहीं, और भी त्वरित गति से जारी हैं। माँ
गंगा जी को अंगूठा दिखाते हुए।
4 नवम्बर, 2008 की प्रेस विज्ञप्ति में प्रधानमंत्री कार्यालय ने
भारतीय जन-मानस और चिन्तन में गंगा जी के विशेष स्थान और भारतीयता के गंगा
जी के साथ भावनात्मक जुड़ाव को स्वीकारने-बचाने की आवश्यकता पर बल देते हुए
गंगा जी को भारत की ‘राष्ट्रीय-नदी’ प्रतीक घोषित करने की पहल की। इसके
पूर्व माननीय प्रधानमंत्री ने परम पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी
स्वरुपानन्द जी के सन्मुख ‘गंगा जी तो मेरी भी माँ हैं’ और पूज्य स्वामी
तेजोमयानन्द जी के सन्मुख ‘गंगा जी तो भारत की आत्मा हैं’ जैसे भाव प्रकट
करते हुए गंगा जी के संरक्षण के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता जताई। पर सरकारी
तंत्र ने माननीय प्रधानमंत्री की पवित्र भावनाओं का वैसा ही कबाड़ा किया और
कर रहा है जैसा पूर्व में माननीय राजीव गांधी जी की भावनाओं, योजनाओं और
आदेशों को किया था। मज़े की बात है कि प्रशासनिक तंत्र में किसी को भी इस
प्रकार के जघन्य अपराध का कोई दण्ड मिलते न कभी देखा न सुना। बलिहारी इस
सर्वशक्तिमान शासन-तंत्र की।
18 मई, 2009 का नैनीताल उच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश केन्द्र सरकार
में सचिव (पर्यावरण एवं वन मंत्रालय) जो पदेन ‘राष्ट्रीय नदी गंगा
प्राधिकरण’ के सदस्य सचिव भी हैं, को या तो लोहारीनाग-पाला परियोजना पर
कार्य जारी रखने के बारे में स्पष्ट निर्णय लेने या इस बारे में सलाह देने
के लिये एक विशेषज्ञ दल गठित करने को कहता है और 4 सप्ताह के भीतर (या 15
जून तक) अपने उक्त आदेश के अक्षरशा: और सार्थक पालन की अपेक्षा करता है। पर
अधिकारी वर्ग तो केवल वर्ग हितों के दबाव में काम करता है। उच्च न्यायालय
या गंगा जी उसका क्या बिगाड़ लेंगे ? वह चिन्ता क्यों करें ?
डॉ. जीडी अग्रवाल कहते हैं कि गत चार सप्ताह से मैं अपनी और गंगा जी की
बात और तथ्यों की स्थिति माननीय प्रधानमंत्री तक पहुँचाने का प्रयास कर
रहा हूँ – सहानुभूति और आश्वासन की बात तो कई बार सुनी पर अन्तत: निराशा ही
हाथ आई। इस झूठ, फरेब, धोखाधड़ी और निपट आर्थिक-भौतिक स्वार्थो से भरे
माहौल में, जहाँ माँ गंगा जी की हत्या होते असहाय बने देखना पड़े़, जीते
रहना मेरे लिये दूभर हो गया है और मैंने रक्षा-बन्धन, 5 अगस्त, 2009 से
अपना अनिश्चित कालीन उपवास पुन: जारी करने का निर्णय लिया है।
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डा0 अनिल गौतम – 09412176896
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