नई दिल्ली [अरविंद जयतिलक]। पिछले दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन और
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति द्वारा लोगों के स्वस्थ जीवन शैली में सुधार
लाने के लिए एक व्यापक समझौते पर हस्ताक्षर किया गया। इस समझौते का मकसद
गैर संचारी रोगों के जोखिम को कम करना है।
गौरतलब है कि संपूर्ण विश्व में गैर संचारी रोगों का प्रभाव तेजी से
बढ़ता जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट को मानें तो गैर संचारी
रोगों से तकरीबन साढ़े तीन करोड़ लोग हर वर्ष दम तोड़ रहे हैं। इनमें 60
वर्ष से कम आयु के लोगों की संख्या लगभग 90 लाख के आसपास है।
एक अनुमान के मुताबिक अगर गैर संचारी रोगों पर समय रहते नियंत्रण नहीं
लगाया जा सका तो आने वाले वर्ष 2015 तक इस तरह के रोगों से मरने वाले
लोगों की संख्या बढ़कर तकरीबन चार करोड़ से भी ऊपर पहुंच सकती है।
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति का मानना है कि 21वीं शताब्दी में गैर
संचारी रोगों पर नियंत्रण लगाना आज दुनिया के सामने एक सबसे बड़ी चुनौती बन
चुकी है। तेजी से बदल रही जीवन शैली, बदलते खान-पान और शारीरिक श्रम या
व्यायाम आदि की कमी के कारण भी आज आम लोगों के जीवन पर संक्रामक रोगों का
खतरा अधिक घना होता जा रहा है।
गैर संचारी जैसे भयंकर रोगों से आज लाखों लोग असमय ही काल के गाल में
समाते जा रहे हैं। हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह और मस्तिष्क आघात से मरने वालों
में सर्वाधिक संख्या आज भारत के लोगों की ही है।
अंतरराष्ट्रीय कैंसर अनुसंधान संगठन का मानना है कि वर्ष 2008 के दौरान
विकासशील देशों में कैंसर के 1.27 लाख नये मामले देखने को मिले, जिनमें से
76 लाख लोगों की असमय ही मृत्यु हो गई। कैंसर के नए मामले और मरने वाले
लोगों की ज्यादातर संख्या कम विकसित देशों से ही है। इनमें भारत भी शामिल
है। हालाकि भारत सरकार इन गैर संचारी रोगों से निपटने के लिए कमर कसती और
तैयारी करती दिख रही है। सरकार ने इन रोगों की रोकथाम के लिए दो वित्त
वर्षो के भीतर 123.90 करोड़ रुपये खर्च करने का फैसला किया है।
इस राशि में तकरीबन 499.38 करोड़ रुपये डायबिटीज, हृदयरोग और स्ट्रोक की
रोकथाम पर खर्च किए जाएंगे, जबकि 731.52 करोड़ रुपये की बड़ी धनराशि सिर्फ
कैंसर नियंत्रण पर खर्च की जाएगी। भारत सरकार गैर संचारी रोगों पर नियंत्रण
स्थापित करने के लिए इस धनराशि को राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत खर्च करेगी।
यह कार्यक्रम देश के 15 राज्यों व केंद्रशासित प्रदेशों के 100 जिलों
के 700 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों और लगभग 20,000 उपकेंद्रों के जरिए
चलाया जाएगा। दरअसल सरकार को यह चिंता सता रही है कि अगर इन बीमारियों पर
शीध्र नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया तो यह बीमारी राष्ट्रीय आपदा का रूप
ग्रहण कर लेगा जिससे निपटना आसान नहीं रह जाएगा। इसलिए सरकार की कोशिश यह
है कि कार्यक्रम के तहत 30 वर्ष से ज्यादा उम्र के व्यक्तियों में गैर
संचारी रोगों को लेकर ज्यादा से ज्यादा जागरूकता पैदाकिया जाए और व्यापक
स्तर पर शारीरिक परीक्षण की व्यवस्था करके बीमारी की शुरुआत को ही पकड़ में
ले लिया जाए।
सरकार की कोशिश यह भी है कि सबसे पहले 30 वर्ष से अधिक उम्र वाले सात
करोड़ लोगों का शारीरिक परीक्षण किया जाए। इसके लिए करीब 32 हजार स्वास्थ्य
कर्मचारियों की मदद की दरकार होगी। सरकार का मानना है कि अगर यह कार्यक्रम
सफल रहा तो देश की एक बड़ी आबादी को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा सकता
है।
भारत सरकार के आकड़ों पर विश्वास किया जाए तो देश के 35 से 64 वर्ष के
आयु वर्ग में होने वाली 42 फीसदी मौतों का कारण गैर संचारी रोग ही हैं।
वर्तमान समय में देश में कैंसर रोगियों की संख्या तकरीबन 35 लाख से ऊपर
पहुंच चुकी है। चिंता वाली बात यह है कि लाख अनुसंधानों के बावजूद भी अभी
तक यह रोग डॉक्टरों के लिए लाइलाज ही बना हुआ है।
अगर समय रहते इन रोगों के लक्षणों को समझ लिया जाए तो इन पर नियंत्रण
पाना आसान हो जाएगा। कैंसर के रोगी का जितना जल्द इलाज शुरू होगा, वह उतना
ही उसके लिए लाभकारी सिद्ध होता है। पिछले सालों में कैंसर रोगियों के
उपचार में नई तकनीक और दवाइयां ईजाद की गई हैं, लेकिन ये दवाइयां हद से
ज्यादा महंगी हैं। सरकार की कोशिश यह होनी चाहिए कि इन दवाइयों की बढ़ती
अनावश्यक कीमतों पर नियंत्रण लगाए ताकि आम लोगों की पहुंच इन दवाइयों तक बन
सके।
गैर संचारी रोगों पर नियंत्रण के लिए सरकार को स्वास्थ्य सेवाओं का
व्यापक स्तर पर सुधार करना होगा। आमतौर पर देखा जा रहा है कि आज स्वास्थ्य
सुविधाएं ज्यादा से ज्यादा शहरों तक ही सीमित हैं। सरकार को अपना फोकस
गावों की ओर घुमाना होगा।
आज गैर संचारी रोगों से मरने वालों की ज्यादातर संख्या गाव में रहने
वाले लोगों की ही है। आज गावो में स्वास्थ्य का बुनियादी ढ़ाचा ध्वस्त हो
चुका है और गाव के जर्जर अस्पतालों से डाक्टर और दवाइयां दोनों ही नदारद
हैं। कैंसर और मधुमेह से पीड़ित लोगों की एक बड़ी संख्या इलाज के लिए शहरों
की ओर रुख करती देखी जा रही है। गाव के लोग जब तक रोगों की पहचान कर पाते
हैं तब तक रोग अपना कमाल दिखा चुका होता है।
आज भी गंभीर रोगों की पहचान गाव के लोगों के लिए पहेली ही बना हुआ है।
जरूरत तो इस बात की है कि सरकार और अंतरराष्ट्रीय संस्थान गैर संचारी रोगों
से निपटने की क्रांतिकारी पहल की शुरुआत गावों से ही करें। इससे समस्या को
जड़ से खत्म करने में मदद मिलेगी।
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि गैर संचारी रोगों को समाप्त करने के लिए
सरकार को स्वयंसेवी संस्थाओं से भी मदद लेनी चाहिए, क्योंकि गैर संचारी
रोग न केवल एक रोग हैं बल्कि एक सभ्य समाज के निर्माण की दिशा में बड़ी
चुनौती भी हैं।