नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। सामान वही, सप्लायर वही, ग्राहक भी वही
लेकिन टेंडर बदलने से दाम हुए दस गुना से भी ज्यादा। स्टेडियमों को सजाने
की असलियत यही है। सीपीडब्ल्यूडी और डीडीए जैसी एजेंसियां जो सामान एक
रुपये में खरीद रही थीं खेलों की आयोजन समिति टेंडर बदलकर उसी सामान की
कीमत दस गुना से ज्यादा देने को तैयार हो गई। इन एजेंसियों के टेंडर
रहस्यमय ढंग से बंद पड़े हैं जबकि समिति का महंगा टेंडर ‘घोटाले’ की शक्ल
लेकर बाहर आ गया है।
खिलाड़ियों के लिए ट्रेडमिल, फर्नीचर, एयर कंडीशनर, जेनेरेटर, पानी की
आपूर्ति की मशीनें, फर्निशिंग आदि दूसरे सामान की सप्लाई से संबंधित जो
टेंडर समिति के गले की फांस बना हुआ है, उसकी असली कहानी कुछ और ही है। इन
सामानों की खरीद दरअसल सीपीडब्ल्यूडी और डीडीए को करनी थी जो स्टेडियम बना
रही हैं। सीपीडब्ल्यूडी ने 15 सितंबर, 2009 और डीडीए ने मई, 2009 को टेंडर
निकाले थे। सीपीडब्ल्यूडी ने तीरंदाजी की प्रतियोगिता के आयोजन स्थल को
सजाने के लिए टेंडर निकाला था जबकि डीडीए ने खेल गांव, यमुना स्पोर्ट्स
कॉम्प्लेक्स, सिरीफोर्ट स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स और साकेत स्पोर्ट्स
कॉम्प्लेक्स के लिए टेंडर निकाले थे।
सूत्र बताते हैं कि इन्होंने जो टेंडर निकाले थे उनमें सारे सामान की
कीमत 60 करोड़ रुपये लगाई गई थी, मगर इन टेंडरों को खोला ही नहीं गया और
समिति ने नए टेंडर निकाल दिए। उनमें इन्हीं साजो सामान की कीमत दस गुना से
भी अधिक बढ़कर लगभग 800 करोड़ रुपये हो गई। दिलचस्प है कि आयोजन समिति ने इस
टेंडर के जरिए उन्हीं चार फर्मो को सप्लाई का ठेका दिया जिन्होंने डीडीए
और सीपीडब्ल्यूडी के टेंडरों में निविदाएं भरी थीं।
सूत्रों के मुताबिक आयोजन समिति के टेंडर में भाग लेने के लिए सबसे बड़ी
शर्त यह थी कि बोली लगाने वाले को ओलंपिक, फीफा, विश्व कप जैसे
अंतरराष्ट्रीय आयोजनों में भागीदारी अनुभव होना चाहिए। इन शर्तो का असर यह
हुआ कि टेंडर में कुछ खास विदेशी कंपनियां ही हिस्सा ले पाई।