भोजन बन नहीं रहा, बच्चे लौट रहे भूखे

मुजफ्फरपुर, जागरण टीम। सरकार की अति महत्वाकांक्षी मध्याह्न भोजन
योजना का हाल यह है कि चावल के अभाव में उत्तर बिहार के जिलों के आधा से
ज्यादा स्कूलों में मध्याह्न भोजन बन ही नहीं रहा है, बच्चे भूखे घर लौट
रहे हैं। पड़ताल से पता चलता है कि व्यवस्था स्कूलों तक चावल पहुंचाने में
ही विफल हो चुकी है, खिचड़ी बने तो कैसे? कहीं निविदाएं नहीं निकाली जा सकीं
तो कहीं ठेकेदार नहीं मिले। कहीं पैसों का टोटा है।

कभी चावल तो कभी राशि नहीं रहने के कारण मुजफ्फरपुर में 25 फीसदी
प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना ठप है। यहां स्कूलों
तक चावल पहुंचाने के लिए संवेदक का भी चयन नहीं किया जा सका है। प्रखंड
शिक्षा अधिकारियों को स्कूल तक चावल पहुंचाने की जिम्मेवारी है, लेकिन
अधिकारी दायित्व नहीं निभा पा रहे हैं।

पश्चिमी चंपारण में चावल आपूर्ति के लिए अभी निविदा भी नहीं निकल पाई
है। दोन और थरुहट क्षेत्र में चावल की आपूर्ति एक माह पीछे चल रही है।
पूर्वी चंपारण में कहीं चावल है तो पैसे नहीं, कहीं पैसे हैं तो चावल का
अभाव है। देहात के बच्चों को किसी भी माह नियमित भोजन नहीं मिलता है।
सीतामढ़ी में 1993 में से 423 विद्यालयों में मध्याह्न भोजन योजना पूरी तरह
ठप है। यह सरकारी आंकड़ा है। जानकारों के अनुसार जिले में छह सौ से ज्यादा
स्कूलों में बच्चे बगैर खिचड़ी खाए लौट रहे हैं। करीब तीन दर्जन विद्यालयों
में यह योजना शुरू भी नहीं हो पाई है।

दरभंगा में करीब साढ़े सात लाख स्कूली बच्चे मध्याह्न भोजन योजना से
वंचित हैं। गांवों की तो बात दूर, प्रमंडलीय मुख्यालय दरभंगा में गत तीन
माह से मध्याह्न भोजन नहीं मिल रहा है। जिले को 1024 मैट्रिक टन खाद्यान्न
आवंटित था। इससे छात्रों को एक सप्ताह भी भोजन नहीं मिल पाता था। अब इसे
बढ़ा कर 2410 मैट्रिक टन कर दिया गया है। संवेदकों का रवैया नहीं बदल पाया
है। मधुबनी में 30 फीसदी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में मध्याह्न भोजन
योजना ठप है। विद्यालयों तक चावल पहुंचाने के लिए संवेदक का चयन तो तब हो
जब निविदा निकले और टेंडर पड़े। इसी तरह समस्तीपुर में अधिकतर स्कूलों में
योजना बंद है। यहां आये दिन घटिया खिचड़ी आपूर्ति को लेकर हंगामा होता रहता
है।

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