भोपाल. प्रदेश में आदिवासियों की गरीबी दूर करने के उपाय सुझाने
के लिए विदेशी सहायता से चल रहे एक प्रोजेक्ट में सिर्फ अध्ययन रिपोर्ट
तैयार करने के नाम पर एक करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी नतीजा सिफर है। छह
साल में सौ से ज्यादा रिपोर्ट बनाने वाले प्रोजेक्ट के कर्ताधर्ताओं के
पास भी इस सवाल का सीधा जवाब नहीं है कि आखिर उनकी इस मेहनत से कितने लोगों
की गरीबी कम हुई?
इतना ही नहीं ब्रिटिश सरकार के अंतर्राष्ट्रीय
विकास विभाग (डीएफआईडी) की मदद से संचालित पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग
के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट -मप्र ग्रामीण आजीविका विकास परियोजना (एमपी
आरएलपी) में हाल ही में एक विदेशी कंसलटेंट को रोजाना 50 हजार रुपए के
हिसाब से भुगतान किया गया है।
मध्यप्रदेश ग्रामीण आजीविका
परियोजना (एमपीआरएलपी) की तकनीकी सहायता ईकाई ने 2004 से लेकर अब तक ऐसी
100 से अधिक रिपोर्ट तैयार की है। इसका फायदा किसे और कैसे मिला इस प्रश्न
का उत्तर किसी के पास नहीं है।
यह परियोजना ब्रिटिश सरकार के
अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग (डीएफआईडी) की ओर से मिलने वाली आर्थिक सहायता
से चलती है। इसके तहत प्रदेश के नौ आदिवासी बहुल जिलों-अलीराजपुर, झाबुआ,
बड़वानी, धार, मंडला, डिण्डोरी, अनूपपुर, शहडोल और श्योपुर के 2901 गांवों
में विभिन्न योजनाएं संचालित है।