कागजों में चल रहा बाल संरक्षण आयोग

राज्य सरकार की ओर से गठित ‘बाल अधिकार संरक्षण आयोग’ दस महीने बाद भी
कागजी बना हुआ है। सरकारी मुहर के महीनों बाद भी इसमें स्थायी अधिकारियों
की तैनात नहीं हो सकी है। राज्य में बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए गठित
आयोग को सरकारी स्वीकृति के बाद से आज तक खुद का भवन तक नहीं मिला है। आयोग
के काम-काज के लिए महिला एवं बाल विकास विभाग को नॉडल एजेंसी बनाया गया
है। अभी तक आयोग में अध्यक्ष पद का जिम्मा महिला एवं बाल विकास विभाग के
निदेशक बी.प्रवीण ही संभाल रहे हैं। हालात यह है कि आयोग के गठन के बाद से
आज तक महज कागजी खानापूर्ति के अलावा कुछ नहीं हो सका है। महिला एवं बाल
विकास विभाग ने अब इसके स्थायी कार्यालय के लिए किसान भवन में जगह लेने की
योजना बनाई है। अब यहां जगह देख कर विभागीय अधिकारियों की सहमति का इंतजार
किया जा रहा है। इसके लिए महिला एवं बाल विकास विभाग ने किसान भवन से ऑफिस
के लिए दिए जाने वाले भवन का हिसाब-किसान मांगा है। इसके बाद यही कार्यालय
खोला जाएगा। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि अभी तो स्थायी सदस्यों का
चयन भी नहीं हुआ है। स्थायी सदस्यों के मनोनयन और ऑफिस के बाद ही बाल
अधिकार संरक्षण के लिए राज्य के कानून-कायदे तैयार किए जाएंगे। अभी तो
राज्य में केंद्र सरकार के बाल अधिकार कानून के सहारे ही काम किया जाता है।
उनका कहना है कि जल्द ही बच्चों के मामले में राज्य का अपना कानून होगा और
बच्चों के अधिकारों के हनन करने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई हो सकेगी।

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