खगड़िया [निर्भय]। बाढ़ रूपी आपदा से अब नहीं होगी जानमाल की अपूर्णीय
क्षति। कारण यह कि फरकिया अर्थात खगड़िया की बहू-बेटियों ने इससे दो-दो हाथ
करने के लिए कमर कस ली है। यहां की 30 महिलाएं बाढ़ में बचाव को लेकर
बूढ़वा घाट के समीप ‘हिलकोर’ मारती बागमती में एक जुलाई से ट्रेनिंग ले
रही हैं। इन्हें न केवल बाढ़ के डूबते हुए लोगों को बचाने की, बल्कि सांप
काटने, डायरिया आदि बीमारियों के प्राथमिक उपचार की ट्रेनिंग भी दी जा रही
है। यह ट्रेनिंग उन्हें किसान विकास ट्रस्ट की ओर से टीडीएच जर्मनी के
सहयोग से दिया जा रहा है।
महिला शक्ति संगठन से जुड़ी फरकिया की ये बहू-बेटियां खोज एवं बचाव दल
के सदस्य के रूप में जब लाइफ जैकेट पहनकर बागमती में छलांग लगाती हैं, तो
दृश्य किसी बालीबुड के सिनेमा से कम नहीं होता है। आत्मविश्वास ऐसा, कि अगर
इसबार बाढ़ आई, तो नाप लेंगी कोसी-बागमती को।
रीता वर्मा [घरारी], डोमनी देवी [अंबा रसौंक], नीलम देवी [चकला
मुसहरी], हीरा देवी [तीनगछिया] कहती हैं- जब-जब बाढ़ आती है, तो हमलोगों को
काफी नुकसान उठाना पड़ता है। जब तक ‘हाकिम के आदमी’ गांव में पहुंचते हैं,
तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है। हमलोग जन्मजात तैराक हैं। केबीटी
[किसान विकास ट्रस्ट] वाले ट्रेनिंग दे रहे हैं। अब बाढ़ में किसी को मरने
नहीं देंगे।
गौरतलब है कि बाढ़ के दौरान सबसे अधिक मौतें डूबने व सांप काटने से
होती है। वर्ष 2007 की बाढ़ में खगड़िया जिला में सरकारी आंकड़े के अनुसार
141 लोगों की जानें गई। सांप काटने की 109 घटनाएं हुईं। दस की मौत हुई।
वहीं, 55 हजार 7 सौ 96 लोगों का विभिन्न अस्पतालों में पेट संबंधी
बीमारियों का इलाज हुआ। तीन हजार छह सौ 67 डायरिया पीड़ित अस्पतालों में
इलाज के लिए भर्ती हुए, जिसमें 15 की मौत हुई।
केबीटी के जिला संगठक कृष्ण मोहन सिंह उर्फ मुन्ना व ट्रस्टी अरुण
कुमार सिन्हा का कहना है कि बाढ़ के दौरान मरने वालों में बच्चों व महिलाओं
की संख्या ज्यादा होती है। ऐसे में महिलाएं खोज एवं बचाव दल के सदस्य के
रूप में ज्यादा कारगर सिद्ध हो सकती हैं।