मुजफ्फरपुर। सीतामढ़ी के नानपुर में आम लोगों की जुबान पर चढ़ चुका यह
जुमला पूरे उत्तर बिहार में अपना मुकाम हासिल कर चुका है। यानी यहा गांवों
में वह भी अपनी डाक्टरी चमका रहा है, जो मैट्रिक की परीक्षा में फेल हो
चुका है।
जबकि, उनके नेमप्लेट पर देखे जा सकते हैं आरएमपी, बीएमपी, एसआईएमएस
[सिम्स], एमआईएमएस [मिम्स] आदि जैसे भारी-भरकम डिग्रियों वाले कोटेशस।
सिम्स व मिम्स पत्रिकाओं के नाम हैं, पर फर्जी चिकित्सकों ने महज इनकी
वार्षिक सदस्यता प्राप्त कर इसे भी अपनी डिग्री में शामिल कर लिया है। अपने
नाम के आगे एफआरसीएस तक लिखने से गुरेज नहीं करने वाले इन चिकित्सकों से
यदि पूछ लीजिए कि यह है क्या तो वे बगलें झाकने लगते हैं।
मोतिहारी के एक डाक्टर ने बीएएमएस का मतलब बैचलर आफ मेडिसिन ऐंड बैचलर
आफ सर्जरी बताया। उनका कहना था कि यह आयुर्वेदिक डाक्टरों की डिग्री है।
सीतामढ़ी के रुन्नाीसैदपुर प्रखंड के मानिकचक पश्चिमी बाजार में एक डाक्टर
हैं, जिनकी शैक्षणिक योग्यता है तो मैट्रिक फेल, लेकिन नाम के आगे लिखते
हैं बीएएमएस। शायद ही कोई बीमारी हो, जिसका इलाज वे नहीं कर पाते हों। इनके
दो-दो क्लिनिक चलते हैं। दूसरा क्लिनिक नानपुर के बहुरार में है।
रुन्नीसैदपुर के ही जबाहीपुर में एक झोलाछाप चिकित्सक ऐसा है, जिन्होंने कर
तो रखी है सातवीं तक की पढ़ाई, लेकिन बोर्ड पर लिखवा रखा है
डा. अमुक, आरएमपी।
सीतामढ़ी बाजार समिति के एक डाक्टर ने अपने क्लिनिक में मेडिकल कालेज
तक खोल रखा है। चार फुट लंबे व दो फुट चौड़े उनके बोर्ड पर ढेर सारी
डिग्रियों की सूची देखी जा सकती है। साथ में असाध्य बीमारियों को ठीक करने
का दावा भी। मधुबनी में अपने नाम के आगे आरएमपी लिखने वाले डाक्टर इस
डिग्री की अलग-अलग व्याख्या करते हैं। कोई रुरल मेडिकल प्रैक्टिशनर, कोई
रजिस्टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर तो कई ने इसे रीयल मेडिकल प्रैक्टिशनर बताया।
यहा कुछ आरएलडी डिग्रीधारी भी हैं, जो खुद को रुरल एलोपैथ डाक्टर बताते
हैं।
समस्तीपुर में आरएमपी, डीएचएमएस, डीएमयू, बीएएमएस, बीएससी आदि
डिग्रियों वाले डाक्टरों की भरमार है। दरभंगा में तो एमबीबीएम लिखने वाले
डाक्टर भी हैं। मतलब पूछने पर हंसते हैं और हंसते-हंसते कहते हैं, अब
डिग्रियों से क्या मतलब? उम्र देखिए, अनुभव काम आ रहा है। मैट्रिक फेल ऊहो
डाक्टर भेल..।