बारिश न होने से अन्न उत्पादक राज्यों पर संकट

नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। देश के प्रमुख अन्न उत्पादक
राज्यों में मानसून की देरी से संकट के बादल फिर मंडरा रहे हैं। जून का
महीना इस क्षेत्र में खेती के लिए खराब साबित हुआ। इस दौरान इतनी बारिश
नहीं हुई कि किसान हल चलाने निकल पड़ता।

धान, सोयाबीन और मोटे अनाज की खेती वाले प्रमुख अन्न उत्पादक सात
राज्यों में जून में 22 से 82 फीसदी तक कम बारिश हुई है। जुलाई का पहला
सप्ताह भी सूखा जा रहा है, जिससे खरीफ की बुवाई में देरी होनी तय है। मौसम
विभाग के आंकड़ों में बिहार ही एकमात्र ऐसा किस्मत वाला राज्य रहा, जहां
बादल थोड़े मेहरबान रहे।

जून के बाद अब जुलाई में भी मानसून की देरी से खरीफ फसलों की बुवाई
शुरू नहीं हो पाई है। अन्न की टोकरी कहे जाने वाले मध्य व उत्तर-पश्चिम
भारत में जून के दूसरे सप्ताह से खरीफ फसलों की बुवाई शुरू हो जाती है।
मौसम विभाग ने जुलाई में अच्छी बारिश का अनुमान लगाया है, लेकिन पहला
सप्ताह खाली चला गया है। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार बुवाई में विलंब होने
पर फसलों की उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ेगा।

मानसून की बेरुखी ने सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश की खेती को प्रभावित
किया है। जून माह में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 82 फीसदी और पूर्वी उत्तर
प्रदेश में 72 फीसदी कम बारिश हुई। यहां धान, मक्का, दलहन व तिलहन की बुवाई
शुरू नहीं हो पाई है। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और चंडीगढ़ में बारिश 53 से
55 फीसदी तक कम बारिश हुई है। खरीफ की खेती के लिए यह सबसे उपजाऊ क्षेत्र
माना जाता है। इन राज्यों को धान, मक्का और कपास खेती के लिए जाना जाता है।

मध्य प्रदेश में मानसून की बारिश न होने से सोयाबीन की खेती पर बुरा
असर पड़ा है। यह खेती यहां की कुल खरीफ खेती के 59 फीसदी रकबे में होती है।
इसके बाद दूसरी बड़ी फसल मक्का है, जिसकी बुवाई पहली बारिश के साथ ही होती
है। छत्तीसगढ़ को तो धान का कटोरा के नाम से जाना जाता है, जहां रोपाई का
काम बारिश न होने से ठप पड़ा है। किसानों को मानसून के बरसने का इंतजार है।
राजस्थान में उत्तर पश्चिम मानसून गुजरात व मध्य प्रदेश के रास्ते प्रवेश
करता है, जो अब तक नहीं पहुंचा है जिससे यहां ज्वार, बाजरा व मक्के की
बुवाई नहीं हो पाई है।

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