सीतामढ़ी । जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था एक अलग ढर्रे पर जा पहुंची है।
चिकित्सक अस्पताल छोड़ निजी क्लिनिक में व्यस्त रहते हैं। कहीं नर्स मरीजों
का इलाज कर रही है, तो कही लैब टेक्निशीयन। रविवार को सदर अस्पताल में ऐसा
ही अजीबोगरीब दृश्य दिखा। यहां डायरिया से पीड़ित एक बच्चे को अस्पताल का
स्वीपर छोटन राम पानी चढ़ा रहा था। कैमरे में कैद तस्वीर सदर अस्पताल की
व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है। शनिवार की रात आठ बजे से
रविवार की सुबह आठ बजे तक डा. मनोज की ड्यूटी थी। वहीं ओम रंजन व राजेंद्र
साह बतौर कर्मी डयूटी तैनात थे। स्वीपर ही कंपाउंडर बन कर मरीजों को स्लाइन
चढ़ा रहा था। सहज कल्पना की बात है कि झाड़ूव लगाने वाले हाथ अगर मरीजों का
इलाज करें, तो उनकी जिंदगी राम भरोसे ही होगी। वैसे यह पहला मामला नही है।
एक पखवारा पूर्व कालाजार वार्ड में ऐसी ही तस्वीर मिली। इस वार्ड में
किसी कर्मचारी के नहीं रहने के कारण रोगी के परिजन स्लाइन निकालते दिखे।
सदर अस्पताल की व्यवस्था का हाल यह है कि दिन के ग्यारह बजे के बाद एक भी
कंपाउंडर नहीं मिलता। चिकित्सक आते-जाते रहते हैं, लेकिन कंपाउंडर का कहीं
भी दर्शन नहीं होता। ऐसे में यदा-कदा मरीज के परिजन खुद कंपाउंडर की भुमिका
में होते हैं। इस वार्ड में कंपाउंडर आते भी हैं, तो मरीज को स्लाइन लगा
कर चले जाते हैं। पानी जब समाप्त हो जाता है, तो परिजन खुद उसे बंद कर नस
से बाहर निकालते हैं। जाहिर है इस दौर में अप्रिय घटना भी हो सकती है।
बहरहाल, स्वास्थ्य महकमा व्यवस्था के सुधार के जितने दावे करता है,
व्यवस्था उतनी ही बदहाल होती जा रही है।
चिकित्सक अस्पताल छोड़ निजी क्लिनिक में व्यस्त रहते हैं। कहीं नर्स मरीजों
का इलाज कर रही है, तो कही लैब टेक्निशीयन। रविवार को सदर अस्पताल में ऐसा
ही अजीबोगरीब दृश्य दिखा। यहां डायरिया से पीड़ित एक बच्चे को अस्पताल का
स्वीपर छोटन राम पानी चढ़ा रहा था। कैमरे में कैद तस्वीर सदर अस्पताल की
व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है। शनिवार की रात आठ बजे से
रविवार की सुबह आठ बजे तक डा. मनोज की ड्यूटी थी। वहीं ओम रंजन व राजेंद्र
साह बतौर कर्मी डयूटी तैनात थे। स्वीपर ही कंपाउंडर बन कर मरीजों को स्लाइन
चढ़ा रहा था। सहज कल्पना की बात है कि झाड़ूव लगाने वाले हाथ अगर मरीजों का
इलाज करें, तो उनकी जिंदगी राम भरोसे ही होगी। वैसे यह पहला मामला नही है।
एक पखवारा पूर्व कालाजार वार्ड में ऐसी ही तस्वीर मिली। इस वार्ड में
किसी कर्मचारी के नहीं रहने के कारण रोगी के परिजन स्लाइन निकालते दिखे।
सदर अस्पताल की व्यवस्था का हाल यह है कि दिन के ग्यारह बजे के बाद एक भी
कंपाउंडर नहीं मिलता। चिकित्सक आते-जाते रहते हैं, लेकिन कंपाउंडर का कहीं
भी दर्शन नहीं होता। ऐसे में यदा-कदा मरीज के परिजन खुद कंपाउंडर की भुमिका
में होते हैं। इस वार्ड में कंपाउंडर आते भी हैं, तो मरीज को स्लाइन लगा
कर चले जाते हैं। पानी जब समाप्त हो जाता है, तो परिजन खुद उसे बंद कर नस
से बाहर निकालते हैं। जाहिर है इस दौर में अप्रिय घटना भी हो सकती है।
बहरहाल, स्वास्थ्य महकमा व्यवस्था के सुधार के जितने दावे करता है,
व्यवस्था उतनी ही बदहाल होती जा रही है।