जान बचाने के लिए सिर्फ 4 घंटे

कोटा. शहर में बाढ़ आ जाए अथवा बैराज से अधिक मात्रा में पानी
छोड़ना पड़े तो चंबल की डाउन स्ट्रीम में बने 15 हजार मकानों में बसे करीब
75 हजार लोगों के सामने संकट आ जाएगा। जब यह मकान बने तब किसी ने आपत्ति
नहीं जताई लेकिन, 4 साल पहले बनी जल प्लावन की स्थिति के बाद प्रशासन सचेत
हुआ, लेकिन अभी तक यह चेतना केवल सर्वे करवाने तक ही सीमित है।

अगर फिर से वही स्थिति बन जाए तो प्रशासनिक कार्रवाई के दौरान लोगों को
सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए महज चार घंटे का समय मिलेगा। वर्ष 2006
में शहर में व मध्यप्रदेश के इंदौर, उज्जैन, धार, झाबुआ, गांधी सागर
क्षेत्र व कोटा में जमकर बारिश हुई थी। गांधी सागर का जलस्तर 1312 फीट से
ऊपर हो गया था। जिसके कारण गांधी सागर के 16 व बैराज के 19 में से 16 गेट
खोलने पड़े थे। पानी की निकासी के कारण डाउन स्ट्रीम की कई इलाके में पानी
भर गया था और लोग बेघर हो गए थे।

पानी उतरने के साथ ही पब्लिक व प्रशासन दोनों के जेहन से उस भयावह मंजर की
तस्वीरें धूंधली हो गई और उसके बाद फिर लोगों ने उसी स्थान पर मकान बना
लिए। न कोई रोकने वाला था और न ही खुद पब्लिक को दुबारा बाढ़ आने की चिंता
थी। हालंकि वर्तमान में मानसून के पहले 28 जून तक गांधी सागर का जलस्तर 826
फीट है।उस स्थिति को ध्यान में रखते हुए जिला प्रशासन ने हाल ही में नदी
किनारे बसी बस्तियों का सर्वे कराया। अग्निशमन विभाग ने यह सर्वे करके
रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंप दी।

रिपोर्ट के मुताबिक चंबल नदी के दोनों पाटों नयापुरा व कुन्हाड़ी की तरफ
चंबल नदी की डाउन स्ट्रीम यानी चंबल नदी के किनारे बैराज से भीमगंजमंडी तक
के क्षेत्र में बसी ऐसी 1 दर्जन बस्तियां, मोहल्ले व कालोनियां है, जिनमें
बने 15 हजार मकान खतरनाक जोन में आ रहे हैं।

बाढ़ आने की स्थिति में जब चंबल उफनेगी तो ये मकान उसकी चपेट में आ सकते
हैं और जान-माल का मुकसान हो सकता है। ये मकान कच्चे नहीं है न ही हाल में
बने है बल्कि ये पिछले 6-7 सालों में बने हैं। कोटा में हर साल बाढ़ अथवा
जल प्लावन की स्थिति तो बनती नहीं है। ऐसे में वर्ष 2004 में बाढ़ आने के
बाद लोग 8-10 सालों के लिए निश्चिंत हो गए और खतरनाक होते हुए भी नदी
किनारे अपने आशियाने बना लिए।

नहीं होने देंगे जनहानि

सर्वे करवाया गया है। जिसमें यह बात सामने आई है। मानसून आने के साथ ही
विभाग सक्रिय हो जाएगा। लोगों को चेतावनी देकर वहां से हटाया जाएगा। बाढ़
नियंत्रण की पूरी तैयारियां कर रखी है। किसी प्रकार की जनहानि नहीं होने दी
जाएगी।’

– टी. रविकांत जिला कलेक्टर

पूरी तैयारी है।

बाढ़ की स्थिति से निबटने के लिए यह सर्वे करवाया गया था। इस सर्वे की
रिपोर्ट जिला प्रशासन के बाढ़ नियंत्रण अधिकारी को सौंप दी गई है। विभाग ने
बाढ़ के हालात से निबटने के लिए पूरीतैयारी कर रखी है।

– संजय शर्मा,
मुख्य अग्निशमन अधिकारी

मकानों पर लगेंगे खतरे के निशान

जिला प्रशासन का बाढ़ एवं आपदा नियंत्रण अनुभाग व सिंचाई विभाग संयुक्तरूप
से मकानों पर तीन रंग के निशान लगाएगा। अलग-अलग रंग के निशान नदी से दूरी व
ऊंचाई के हिसाब से होंगे। नदी के एकदम किनारे पर बसे मकानों को पूरी तरह
से खतरनाक मानते हुए उन पर लाल रंग के निशान लगाए जाएंगे। उससे कुछ दूर बसे
मकानों पर हरा अथवा काला रंग का निशान लगाएंगे। बहुत अधिक पानी छोड़े जाने
पर डूबने की स्थिति वाले नदी से कुछ ऊंचाई पर बने मकानों पर सफेद रंग का
निशान लगाया जाएगा। वहां के लोगों इन निशानों का मतलब नदी के जल स्तर के
बारे में समझाया जाएगा।

ऐसे मिलेंगे बचने के चार घंटे

गांधी सागर से पानी छोड़ने से पहले कोटा बैराज को सूचना दी जाती है कि वे
इतना पानी छोडेंगे। ऐसे में बैराज से जिला प्रशासन के बाढ़ नियंत्रण कक्ष
को यह जानकारी दी जाएगी। प्रशासन पानी की क्षमता के हिसाब से डूब क्षेत्र
में माइक से ऐलान करवाएगा और लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचने के लिए
कहेगा। इस प्रक्रिया में मात्र 4 घंटे का समय लगता और यही समय लोगों को
सुरक्षित स्थान पर कूच करने के लिए मिलता है।

इस समय में उन्हें खुद को बचाना है और अपने कीमती सामानों को सुरक्षित
स्थान पर ले जाना है। यह भी जरुरी नहीं है कि उस वक्त मौसम साथ दे हो सकता
है उस समय मूसलाधार बारिश हो रही हो। साथ ही यह भी पूछा जाता है कि क्या वे
पानी लेने की स्थिति में हैं। जितना पानी ऊपर गांधी सागर से आएगा लगभग
उतना पानी को भी छोड़ना पड़ेगा।

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