छाप छोड़ने की भारी जद्दोजहद

नई दिल्ली. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुआई वाली राष्ट्रीय
सलाहकार परिषद (एनएसी) की दूसरी बैठक में महत्वाकांक्षी खाद्य सुरक्षा एवं
सांप्रदायिक हिंसा कानून ही छाए रहे। यूपीए सरकार के पिछले कार्यकाल में
नरेगा व सूचना के अधिकार कानून की तर्ज पर सोनिया गांधी की अगुआई वाली
सलाहकार परिषद इस बार खाद्य सुरक्षा व सांप्रदायिक हिंसा कानूनों पर अपनी
छाप छोड़ने के खातिर इन्हें निर्णायक रूप देने के लिए प्रयासरत रही।

इस आशय के साफ संकेत गुरुवार को यहां आयोजित परिषद की दूसरी बैठक में देखने
को मिला। सोनिया गांधी की दृष्टि से ये दोनों ही बिल काफी महत्वपूर्ण हैं,
क्योंकि खाद्य सुरक्षा कानून जहां कांग्रेस के आम आदमी व वंचित वर्गो पर
केंद्रित है, वहीं सांप्रदायिक हिंसा कानून का संबंध अल्पसंख्यक समुदायों
से है।

परिषद द्वारा खाद्य सुरक्षा एवं सांप्रदायिक हिंसा कानून पर सभी से
विचार-विमर्श करने के लिए गठित दोनों कार्यसमूह राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की
अगली बैठक में अपनी सिफारिशें सौंप देंगे। फिलहाल दोनों कार्यसमूह
प्रस्तावित विधेयकों के सभी पहलुओं को लेकर संबंधित पक्षों से मंत्रणा कर
रहे हैं।

सांप्रदायिक हिंसा कानून पर कार्यसमूह ने गृह एवं कानून मंत्रालयों से
विस्तृत चर्चा की है। समूहों की रपट आने के बाद सलाहकार परिषद इस बारे में
केंद्र सरकार को इन बहुचर्चित विधेयकों पर अपनी राय देगी। बैठक में खाद्य
सुरक्षा कानून को लेकर प्रो. एमएस स्वामीनाथन व हर्ष मंदर ने विस्तृत
प्रस्तुति के जरिए खाद्यान्न की उपलब्धता व पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया।

प्रस्तावित कानून के तहत खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने गरीबों
में अभावग्रस्त तबकों मसलन बुजुर्गो, अपंगों, लावारिसों, गली के बच्चों,
अनुसूचित जनजातियों और टीबी, एड्स व कोढ़ग्रस्त लोगों पर विशेष ध्यान दिए
जाने की जरूरत पर बल दिया।

बैठक में देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली में आमूल-चूल सुधारों पर भी बात
हुई। बैठक में दोनों कार्यसमूहों द्वारा संबंधित मंत्रालयों और इनसे जुड़े
सभी वर्गो के साथ जारी सलाह-मशविरे की जानकारी व प्रगति रपट भी रखी गई।

परिषद द्वारा यह सारी कवायद ऐसे समय में की जा रही है जब मंहगाई की दर 17
फीसदी है और सोनिया गांधी ने खाद्य सुरक्षा कानून पर अधिकारप्राप्त
मंत्री-समूह द्वारा प्रस्तावित विधेयक के प्रारूप में सुधार पर जोर दिया
था।

सुधार के बिंदुओं में मासिक खाद्यान्न आपूर्ति व लाभार्थियों की संख्या
शामिल है। विधेयक में लक्षित वर्गो को तीन रुपए किलो गेहूं या चावल देने को
कानूनी हक बनाने की बात है। सही आंकड़ों के अभाव में केंद्र सरकार ने
योजना आयोग से गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के सही आंकड़े जुटाने को
कहा है।

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