सामने आ गई है। इससे पता चला है कि प्रायमरी में पढ़ने वाले देश के 94
फीसदी बच्चे अंग्रेजी को विदेशी भाषा मानते हैं। 11 राज्यों में हुए अध्ययन
में पाया गया कि छह प्रतिशत बच्चे ही अंग्रेजी के अक्षरों को पहचान पाते
हैं। चंडीगढ़, मध्यप्रदेश और असम के बच्चे तो इसमें भी फेल रहे।
प्रायमरी शिक्षा को देशभर में एक समान बनाने की यूपीए सरकार की कोशिशों को
इस सच्चई से बड़ा झटका लगा है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह
अहलूवालिया की अगुवाई वाले प्रोग्राम इवैल्यूएशन आर्गनाइजेशन (पीआईओ) ने इस
अध्ययन रिपोर्ट को जारी किया है। इसके अनुसार, सिर्फ अंग्रेजी ही नहीं,
बल्कि बच्चे अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में भी कमजोर हैं। 42 प्रतिशत बच्चे
स्थानीय भाषा के अक्षर पहचान सकते हैं। हालांकि, नंबरों के मामले में बच्चे
तेज हैं। 80 प्रतिशत बच्चों ने संख्याएं सही पहचानीं।
पहले गुरुजी को पढ़ाओ
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया की अगुवाई वाले प्रोग्राम
इवैल्यूएशन आर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़, बिहार,
उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, जम्मू-कश्मीर और उड़ीसा में
शिक्षकों को प्रशिक्षित करना एक बड़ी चुनौती है। केंद्र सरकार ने इन
राज्यों से शिक्षकों की ट्रेनिंग के लिए विशेष कार्यक्रम चलाने को कहा है।
उत्तर-पूर्वी राज्यों में करीब 75 फीसदी तक अप्रशिक्षित शिक्षक हैं। ऐसे
में विद्यार्थियों की अक्षमता चौंकाने वाली प्रतीत नहीं होती।
निम्नस्तरीय पद्धति ने मध्यप्रदेश को बनाया पिछड़ा
रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा एक और दो में निम्नस्तरीय शिक्षा पद्धति ने
मध्यप्रदेश और असम जैसे राज्यों में बच्चों को पिछड़ा बना दिया है। इन
दोनों राज्यों के क्रमश: 17 और 13 फीसदी बच्चे ही परीक्षा में पास हो पाते
हैं। हरियाणा में यह दर 21 और राजस्थान में 16 फीसदी है। एक और कारण यह भी
है कि एसएसए के अनुसार जहां एक स्कूल में दो टीचर होने चाहिए, वहीं सात
फीसदी स्कूलों में एक शिक्षक हैं, जबकि 30 प्रतिशत में दो से ज्यादा टीचर
नहीं मिले। हरियाणा और पंजाब में 90 फीसदी टीचर पढ़ाने का काम छोड़कर
निर्माण कार्र्यो की निगरानी और पशुओं की गिनती करते पाए गए।