नई दिल्ली [सुरेंद्र प्रसाद सिंह]। उत्तर भारत में भी गरीबी का
मुकाबला दक्षिणी राज्यों के फार्मूले पर किया जाएगा। इसके तहत उत्तरी
राज्यों में गरीबों के स्वयं सहायता समूह बनाकर उन्हें पर्याप्त मदद मुहैया
कराई जाएगी ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें। गरीबी रेखा से नीचे रहने
वाले 6.50 करोड़ परिवारों में से दो करोड़ परिवारों को इस योजना के दायरे में
पहले ही शामिल कर लिया गया है। उत्तरी राज्यों में इस योजना पर पूरी तरह
अमल नहीं हो सका है, जिसके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय
आजीविका मिशन के तहत विस्तृत योजना बनाई है।
इस संबंध में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री सीपी जोशी ने बताया कि
राष्ट्रीय आजीविका मिशन के लिए धन की कोई कमी नहीं पड़ने पाएगी। सरकार
गरीबों के उत्थान के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र सरकार ने अगले छह से आठ
सालों में गरीबी उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है।
योजना को असरदार तरीके से लागू करने के लिए सभी विकास खंडों पर
कर्मचारियों की नियुक्ति की जाएगी, जो सिर्फ इसी काम के लिए नियुक्त किए
जाएंगे। ये कर्मचारी राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत दक्षिणी राज्यों की
तर्ज पर गरीबों के स्वयं सहायता समूह [सेल्फ हेल्प ग्रुप यानी एसएचजी]
बनाने में मदद करेंगे। साथ ही उन्हें जागरूक करने और वित्तीय मद मुहैया
कराने में भी उनकी सहायता करेंगे। ऐसे कर्मचारियों की नियुक्ति अनुबंध के
आधार पर की जाएगी। उनके कार्य प्रदर्शन को आधार बनाकर उनकी नौकरी को
विस्तार दिया जा सकेगा।
स्वयं सहायता समूह के फार्मूले से दक्षिण भारत के राज्यों केरल,
तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में गरीबी उन्मूलन में
बहुत मदद मिली है। 10 गरीब परिवारों से गठित समूहों का फेडरेशन भी गठित
किया जाएगा। इनकी मदद के लिए बैंकों के साथ-साथ निजी कंपनियों की भी मदद ली
जाएगी। बैंकों से सात फीसदी ब्याज दर पर रियायती ऋण दिलाने के लिए ब्याज
पर सब्सिडी भी दी जाएगी। एक लाख रुपये तक के ऋण के लिए स्वयं सहायता समूहों
को किसी दस्तावेज की जरूरत नहीं पड़ेगी।