नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। उड़ीसा के कोरापुट जिले में आरटीआई
कार्यकर्ता देवाशीष भंट्टाचार्य ने गरीबी का बुरा हाल देखा। वहां लोग जिंदा
रहने के लिए चूहे, चींटी और पेड़ों की जड़ें खा रहे थे। जब वह भारतीय खाद्य
निगम [एफसीआई] के गोदाम गए तो हैरान रह गए। तय नियमों के मुताबिक खाद्यान्न
का भंडारण नहीं हो रहा था। लिहाजा अनाज खराब हो रहा था।
देवाशीष ने स्थिति का पूरी तरह से आकलन करने के लिए जनवरी, 2008 में
गृह मंत्रालय को आरटीआई आवेदन भेजा। जिसमें पिछले 10 वर्षो के दौरान
गोदामों में नष्ट हुए अनाज, नष्ट होने का कारण, खराब अनाज को हटाने के
प्रयासों के संबंध में जानकारी मांगी गई थी।
इस आरटीआई आवेदन को जो जवाब मिला, उसके निष्कर्ष चौंकाने वाले थे। पता
चला कि पिछले 10 वर्षो में 10 लाख टन अनाज बेकार हो गया है। जबकि यह अनाज
करीब एक करोड़ लोगों को एक साल या करीब छह लाख लोगों को 10 साल तक इससे भोजन
मिल सकता था। उससे भी खराब स्थिति यह थी कि अनाज को संरक्षित रखने के लिए
करीब 243 करोड़ रुपये खर्च किए गए। जबकि खराब अनाज को नष्ट करने के लिए
करीब दो करोड़ रुपये खर्च किए गए।
अनाज के खराब होने की वजह यह बताई गई कि इधर-उधर ले जाने, भंडारण और
वितरण प्रक्रिया के कारण यह अनाज खराब हो जाता है। इसके बाद इस मुद्दे को
लोकसभा सदस्य अनंत कुमार ने संसद में उठाया, जिस पर कृषि मंत्री शरद पवार
ने उचित कार्यवाही का आश्वासन दिया। देवाशीष कहते हैं कि जब तक इस मसले का
समाधान नहीं हो जाता तब तक वह आरटीआई के जरिए इस मुद्दे को उठाते रहेंगे।