लखनऊ [स्वदेश कुमार]। उत्तरप्रदेश की इस हकीकत पर जरा नजर डालिए। भूजल
स्तर से तेजी से नीचे जा रहा है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर जिलों
में भूगर्भ जल का स्तर 15 मीटर के नीचे चला गया तो वहा का हर पौधा मर
जायेगा। वर्तमान में 40 जिलों के 138 विकास खंड ऐसे हैं, जहा पानी का संकट
गहरा चुका है। तमाम नये विकास खंड भी पानी संकट की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं।
ये वे क्षेत्र हैं जहा जमीन की कोख से 70 फीसदी उपलब्ध जल को निकाला जा
रहा है।
बदायूं, सहारनपुर, बागपत ऐसे ही जिले हैं। लेकिन हैरानी यह है कि
प्रदेश में भूजल के बेजा दोहन को रोकने के लिए अब तक कोई कानून नहीं बन सका
है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य होने के नाते अन्य राज्यों के लिए
आदर्श स्थापित कर सकता था लेकिन ऐसा सम्भव नहीं हुआ। अब यहा भूजल के बेजा
दोहन को रोकने के लिए कानून का मसौदा तैयार किया गया है। उस पर अभी सुझाव
मागे गए हैं यानी कानून बनने में अभी भी लम्बा वक्त लगने की सम्भावना है।
प्रस्तावित कानून की खास बातें-
पानी के भावी संकट को देखते हुए भूजल के अनियंत्रित दोहन को रोकने के
लिए सरकार जो कानून लाने जा रही है उसमें कानून का उल्लघन करने पर जुर्माना
और जेल दोनों का प्रावधान किया गया है।
1. वे क्षेत्र जो नान नोटीफाइड होंगे -शहरी क्षेत्रों में 0.5
हार्सपावर तक और ग्रामीण क्षेत्रों में 7.5 हार्सपावर तक पम्प सेट लगाने पर
कोई बंदिश नहीं रहेगी।
-इससे अधिक क्षमता के पम्प सेट लगाने के लिए रेजीडेन्ट वेलफेयर
एसोसिएशन अथवा वाटर यूजर एसोसिएशन से अनुमति लेनी होगी।
-दुकानदार को इस क्षमता से अधिक का पम्प बेचने पर प्राधिकरण को सूचित
करना पड़ेगा।
-भूगर्भ जल के बल्क यूजर को न केवल अपना रजिस्ट्रेशन कराना पड़ेगा,
बल्कि वह जितने भूगर्भ जल का उपयोग करेगा, उससे ज्यादा उसे रेन वाटर
हार्वेस्टिंग की व्यवस्था कर रिचार्ज करना होगा।
-बल्क यूजर से फीस लेने का भी प्रावधान होगा।
2.दोहित [सेमी क्रिटिकल] क्षेत्र
-इनमें शहरी क्षेत्रों में 0.5 हार्सपावर से अधिक के पम्पसेट पंजीकृत
सर्विस प्रोवाइडर के माध्यम से स्थापित किये जा सकेंगे। ऐसे मामलों में रेन
वाटर हार्वेस्टिंग अनिवार्य होगा। भूजल का दोहन निर्धारित सीमा तक ही किया
जा सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में यह 7.5 हार्सपावर से ऊपर के पम्पसेट के
लिए अनिवार्य होगा।
-कामर्शियल और इंड्रस्टियल यूजर को सामान्य और दोहित क्षेत्रों में
नलकूपों के लिए आवेदन करना होगा और पंजीकृत सर्विस प्रोवाइडर की देखरेख में
ही वे इसका निर्माण करा सकेंगे। उन्हें इसके बदले रेन वाटर हार्वेस्टिंग
की व्यवस्था करनी अनिवार्य होगी। साथ ही इन्हें वर्ष में दो बार निरीक्षण
कराना होगा। उनसे भूजल दोहन की फीस भी ली जायेगी।
3.अतिदोहित [क्रिटिकल] क्षेत्र -इन क्षेत्रों में नये नलकूपों अथवा
कूपों का निर्माण पूरी तरह प्रतिबंधित। सिर्फ पेयजल हेतु नलकूप के निर्माण
की अनुमति। वह भी पंजीकृत सर्विसप्रोवाइडर की देखरेख में होगा। सभी
वर्तमान और नये उपभोक्ताओं रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करनी
अनिवार्य होगी।
-कामर्शियल और इंड्रस्टियल यूजर को नलकूप स्थापित करने की अनुमति नहीं
होगी। वर्तमान उपभोक्ताओं को रेन वाटर हार्वेस्टिंग की व्यवस्था करनी होगी।