कानकून सम्मेलन से सार्थक परिणाम आए

संयुक्त राष्ट्र। जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगन समझौते को मजबूती
प्रदान करने की आवश्यकता पर बल देते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान-की
मून ने इस वर्ष के अंत में होने वाले कानकून सम्मेलन में यथार्थवादी परिणाम
हासिल करने का आह्वान किया है।

टोरंटो में जी-20 सम्मेलन में विश्व के नेताओं को संबोधित करते हुए मून
ने कहा कि समग्र वैश्विक समझौते पर पहुंचाना शीघ्र और आसान नहीं होगा।
हालंाकि महासचिव कार्यालय के अनुसार कानकून में सार्थक और यथार्थवादी
परिणाम हासिल करना संभव जरूर होगा।

उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर निष्क्रियता का जोखिम हर वर्ष
बढ़ता जा रहा है। हम जितना देर करेंगे हमें उतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी।
उल्लेखनीय है कि दिसंबर, 2009 में कोपेनहेगन में हुए सम्मेलन में कानूनी
रूप से बाध्यकारी समझौता नहीं हो पाया था और बस कोपेनहेगन समझौते पर आगे
बढ़ने की बात हुई थी। इस समझौते के मुख्य तत्व वैश्विक तापमान में दो
डिग्री की कमी लाना, विकासशील देशों को 100 अरब डालर की दीर्घकालीन वित्तीय
सहायता तथा गरीब एवं सर्वाधिक प्रभावित होने वाले देशों को 30 अरब डालर की
लघुकालीन वित्तीय सहायता हैं।

मून ने कहा कि जी-20 के सदस्य देशों को सार्वजनिक रूप से कोपेनहेगन के
महत्वपूर्ण परिणामों को एक ऐसे आधार के रूप में स्वीकारना होगा जिसपर
संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन समझौता प्रारूप पर वार्ता आगे बढ़ सके।

उन्होंने कहा कि काफी मुश्किल से हासिल समझौतों की उपेक्षा नहीं की जा
सकती। गौरतलब है कि कोपेनहेगन समझौते का प्रारूप मुख्यत: अमेरिका, चीन,
भारत, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका द्वारा तैयार किया गया था लेकिन बोल्विया,
वेनेजुएला, निकारागुआ और क्यूबा समेत कई देशों ने यह कहकर इसकी आलोचना की
थी कि इस वार्ता प्रक्रिया में उन्हें साथ नहीं लिया गया।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने जी-20 देशों को उपशमन संकल्पों को पूरा
करने के लिए प्रोत्साहित करते हुए कहा कि औद्योगिक देशों को जलवायु
परिवर्तन वित्तीय दायित्व को पूरा करना चाहिए। बान ने कहा कि 100 अरब डॉलर
की दीर्घकालीन वित्तीय सहायता की राशि जुटाने पर ठोस प्रगति हुई है।

उल्लेखनीय है कि यह धनराशि जुटाने के लिए 16 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र
उच्चस्तरीय सलाहकार दल है जिसमें भारत से योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक
सिंह अहलूवालिया शामिल हैं।

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